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Monday, September 17, 2012

मतलब की है दुनियां सारी, मतलब के सारे संसारी


मतलब की है दुनियां सारी, मतलब के सारे संसारी 

आज बड़े दिनों बाद ब्लॉग जगत में आना हुआ। बहुत कुछ बदल गया है। लोग वही हैं पर चेहरे बदल गए है।
इसी बात पर उँगलियाँ कुछ लिखने को उतावली हो रही है।











जमाना कितना बदल गया है,
लोग वही हैं पर चेहरा बदल गया है।
कहते थे तुम चलो हम तुम्हारे साथ है,
अब कहते हैं तुम चले चलो हम तुम्हारे साथ है।

हाथ में देकर बन्दूक, बारूद छुपा लेते हैं,
रखकर कंधे में बन्दूक, घोड़ा दबा देते हैं।
लगा निशाना तो उन्होंने चलाया,
वरना निशाना हम पर लगाया।

जले पर नमक छिडकते हैं,
दे धमकी काम करते है,
ना सुनो उनकी,
तो सुना-सुना के जान लेते हैं।

मुँह सामने ऐहशान जताते है,
पीठ पीछे छूरियाँ चलाते है।
मन ही मन जलते हैं,
फिर भी अपनापन जताते  है।

ना दूसरा उनसा कोई बताते हैं,
आपको आपकी ही नजरों में गिरते हैं।
दे कर हाथ उठाते है,
मान मेरा ऐहशान अरे नादान कहते जाते हैं।

Friday, February 18, 2011

वो पूजा पूजा न रही



जिसको पूजा पूजा की तरह,
वो पूजा पूजा हो गयी ।
इसमें पूजा का दोष नहीं ,
हमारी पूजा मे ही कमीं रह गयी ।

जिसको पूजा अश्क बहा के,
वो पूजा अश्क धारा me पूजा हो गयी ।
वो पूजा पूजा न रही,
जो पूज के भी पूजी न गयी।

वो पूजा जिसे चाहा हमने,
वो पूजा पूजा न रही।
वो पूजा जिसे पूजा दिल से,
वो पूजा पूजा न रही।

Sunday, May 2, 2010

यादें बस यादें रह जाती हैं


वो स्कूल की सीड़ी पर प्यार भरी बातें,
आते जातों पर कमेंट की बरसातें,
वो स्लेबस की टेन्सन, वो इक्ज़ाम की रातें
वो कैंट्टीन की पार्टी, वो बर्थडे की लातें
वो रूठना मनाना, वो बंक वो मुलाकातें
वो लैब वो लाइब्रेरी,
वो सोना टैम्प्रेरी
वो मूवी वो म्युजिक
वो कार्ड के मैजिक
वो प्रपोज़ल की प्लानिंग में रात का गुजरना
हर एक को दोस्त की भाभी बताना
लैक्चर से ज्यादा उसको निहारना
फिर क्लास में पीछे की सीट में सोना
उसकी नज़र में शरीफ़ बनाया जाना
ना रहे वो दिन ना रही वो रातें
ना रही वो वो हँसी भरी मुलाकातें
रही अगर कुछ तो बस यादें

Friday, April 30, 2010

धरती कहे पुकार के


*****कविता *****

धरती कहे पुकार के
अब तो सभलो भाई
धड़कनें मेरे दिल की
क्यूँ बढ़ाते हो भाई

जबसे भेजा बच्चा तुमने स्कूल
भेजे में भरते गये उसके ये फितूर
दोहन नहीं हुआ धरती का ढंग से
लूटो, खसोटो बचे आभूषण उसके तन से

आभूषण मेरे पेड़, पहले ही छीन डाले तुमने सारे
मेरे तन का खून, नदी नाले सारे
कर दिया पैदा इनमें अवरोध
फिर भी नहीं कोई अपराधबोध

लूटा खसोटा तन को मेरे
खून रूका तन का मेरे
मन हो उठा बेचैन, उठा गुबार मन का मेरे
बन ज्वालामुखी अखियन तेरे

जब तक सताएगा, तड़पाएगा मुझे
नहीं मिलेगा चैन, आराम तुझे
मिलते रहेंगे नित नये झटके तुझे
अब तो सभल जा और समझ जा मुझे

मॉ तो होती है सब लुटाने वाली
पर क्यूं लगी तुझे लूटने की बिमारी
क्यूं करता यूं तू मारामारी
अब भी सभल जा वक्त रहते,बहुत बुरी है तेरी ये बिमारी

Thursday, April 29, 2010

उफ उफ गरमी, हाय हाय गरमी



आया मौसम गरमी का,
आया मौसम नरमी का।
गये कपड़े गरमी वाले,
आये कपड़े गरमी वाले॥

गरमी आते खुल जाते पंखे,
ए.सी, कूलर और हाथ के पंखे।
जब आंख मिचौली करती बिजली,
तब इंवर्टर से मिलती बिजली॥

लू से बचते लू को खाते,
ना जाने कितने लोग।
बढ़ती गरमी के चक्कर में,
चक्कर खाकर गिरते लोग॥

गरमी को दूर भगाने के,
नित नये साधन आते॥
कोल्ड्रिंक, लस्सी, सत्तू, नीबू-पानी,
और भी ना जाने कितने साधन बन जाते॥

गरमी नित नये खेल दिखाती,
अच्छे अच्छों को नाच नचाती॥
सड़क, गली गलियारे सारे,
लगते सब वीरान बंजारे॥

गरमी में सब ढ़ूढ़ते छॉव,
पर अब ना रहे पेड़, ना रहे गॉव
ना चिड़िया का चहकना , ना कौवे की कॉव-कॉव,
ना रहे दादी के किस्से, ना रही पीपल की छॉव॥

नदियां नाले सूखे सारे,
पानी को तरसते सारे।
पानी मिले न मिले,
पर पिज्जा कोक पर पलते सारे॥

गरमी में सब ढ़ूढ़ते नरमी,
जाते पहाड़ ढ़ूढ़ने नरमी॥
पर अब पहाड़ भी ना रहे वो पहाड़,
अपना अस्तित्व खुद ढ़ूढ़ते पहाड़॥

Monday, September 14, 2009

हिन्दी दिवस पर हिन्दी

*****हिन्दी दिवस पर हिन्दी*****

हिन्दी दिवस पर हिन्दी को समर्पित कविता "हिन्दी"

हिन्दी

हिन्दी हिन्दी हिन्दी

चलो मनाएं दिवस हिन्दी

जहाँ मातृभाषा है हिन्दी

जहाँ सोते जागते खाते पीते बोलते हैं हिन्दी

जहाँ अपनापन जगाती है हिन्दी

सबको एक बनाती है हिन्दी

अजनबी सी होती हिन्दी

अंग्रेजी संग बौनी लगती हिन्दी

सरकारी उपेक्षा का शिकार हिन्दी

स्कूल किताबों से दूर जाती हिन्दी

अंग्रेजी संग संघर्ष करती हिन्दी

अपना अस्तित्व बचाती हिन्दी


समय साथ बदली हिन्दी

अंग्रेजी संग बोली जाती हिन्दी

तब हिंग्रेजी बन जाती हिन्दी

सबका काम कराती हिन्दी

हिन्दुस्तान की आन है हिन्दी

हिन्दुस्तान की शान है हिन्दी

हिन्दुस्तान को हिन्दुस्तान बनाती हिन्दी

हिन्दुस्तान की पहचान है हिन्दी

- कामोद

Sunday, September 6, 2009

ब्लॉगिंग का धर्म

*****ब्लॉगिंग का धर्म*****
पिछले कुछ दिनों से ब्लॉग जगत में ब्लॉगिंग हिन्दू बनाम मुसलमान बन रही है। ब्लॉगर ताल ठोकर खुद हो साबित करने का प्रयास कर रहा है। हिन्दू मुसलिम विवाद यहाँ साफ दिखाई देता है । क्या यह ब्लॉगिंग और ब्लॉग जगत में धर्म का प्रवेश है।

ब्लॉगिंग का धर्म

ब्लॉगिंग का भी होता है धर्म
धर्म जिसका नहीं कोई मर्म
धर्म हिन्दू है या मुसलमान
इससे हूँ मैं अनजान

ब्लॉगिंग का धर्म कहाँ से आया
जिसने ढ़ूँढ़ा उसने पाया
ढ़ूँढ़ी गई ब्लॉगिंग की जात
फिर मचाया उस पर उत्पात

तेरी लेखनी हिन्दू है
तेरी लेखनी मुसलमान
धर्म आया बीच बन दीवार
किसने दिया तुमको ये अधिकार

बाँट दिया जिसने जग सारा
क्यूँ लेते हो उसका सहारा
बनाओ इसे यूँ आवारा
यही तो है हमारी एकता का सहारा


-कामोद


Saturday, September 5, 2009

अंतहीन इंतजार

*****अंतहीन इंतजार******


वो बूढ़ी निगाहें तलाश रही एक आशियाना,
अपनों से दूर अपनों की तलाश में ।
एक अंतहीन इंतजार में॥



कामोद

Friday, August 7, 2009

ऐ लो जी सनम हम आ गये

*****ऐ लो जी सनम हम आ गये *****

करीब छ: महिने से चाहकर भी अपनी ब्लॉगिंग की गाड़ी को धक्का नहीं लगा पा रहा था। कारण कुछ निजी थे॥ सार्वजनिक करने पर सच का सामना जैसी स्थिति हो सकती है । चलिये अब आये हैं तो कुछ लिखना पड़ेगा ही।

इन दिनों मेरे देश में

मन्दी ने अपना असर दिखाया.
महंगाई ने अपना कहर ढाया.
अच्छे अच्छों को नाँच नचाया.
चीनी चढी ऊपर आलू प्याज तक ने रूलाया।

माया ने अपना पुतला लगाया
गरीबों को ठेंगा दिखाया।
कहीं सूखे ने अपना असर दिखाया
वहीं बाढ़ ने कहर ढ़ाया

रेल में बैठ ममता आई
लालू जी की सामत आई.
नये नये सपने लाई
लालू रेल की पोल खुलाई।

देखो कसाब की खुली कलाई
खुद ही अपनी करतूत बताई
मुंबई हमले वालों की भी हुई सुनवाई
साजिश करने वालों को हुई फ़ाँसी की सुनाई.

Friday, October 17, 2008

करवाचौथ पर विशेष

*****करवाचौथ पर विशेष*****

यह पोस्ट पिछ्ले साल आज के विशेष पर्व करवाचौथ के अवसर पर लिखी थी. तो देखिए करवाचौथ पर विशेष आखिर क्यूँ मनया जाता है यह विशेष पर्व ...

आज का दिन खास है भारतीयों के लिए. विशेषकर भारतीय नारियों के लिए. आप तो समझ ही गये ना कि मैं ऐसा क्यूँ कह रहा हूँ. आज है ना वह विशेष पर्व (दिन) जिसका हर भारतीय नारी (शादीशुदा) को बड़ी उत्सुकता से इंतजार रहता है.जी हाँ सही समझे करवाचौथ. आज के दिन भारतीय नारी बिना खाये पिये, भूखे प्यासे रहकर अपने पति की लम्बी उम्र के लिए उपवास रखती है. इसके पीछे कई किंवदंतियां प्रचलित हैं. पर ये कुछ खास है.

एक समय की बात है .......
लक्ष्मी जी दिपावली के दिन पृथ्वीलोक में अपने भक्तों के घर आशीर्वाद देने जा रही थी. इधर से उधर , एक भक्त के घर से दूसरे भक्त के घर, फिर तीसरे फिर चौथे.... बारी-बारी सभी भक्तों के घर जा रही थी. सभी भक्त बड़े तन, मन और धन से लक्ष्मी जी की पूजा कर रहे थे. लक्ष्मी जी पर आरती आरतीयां गाई जा रही थी. लक्ष्मी जी खुश होकर आशीर्वाद दे रही थी.

बाहर बैaaठा लक्ष्मी जी का वाहन उल्लू यह सब देख रहा था. उल्लू को बहुत दुख हुआ. उसने सोचा कि वह लक्ष्मी जी का वाहन है फिर भी कोई उसे पूछता नहीं है उल्टा दुत्कारते ही है. लक्ष्मी जी का वाहन ‘उल्लू’ रूठ गया और बोला “आपकी सब पूजा करते हैं , मुझे कोई नहीं पूछता”. लक्ष्मी जी बात समझ गई . लक्ष्मी जी हल्का सा मुस्कराई और बोली “ अब से हर साल मेरी पूजा से 11 दिन पहले तुम्हारी पूजा होगी”. उस दिन सिर्फ उल्लू पूजे जायेंगे.

तब से दिवाली के 11 दिन पहले ‘कड़वा चौथ’ कहकर उल्लू दिवस मनाया जाता है.
आज के जमाने में उल्लू तो आसानी से मिलते नहीं है. पर फिर भी उल्लू दिवस बड़े ही उत्साह से मनाया जाता है. हाँ उल्लू की जगह किसी और ने ले ली है. शायद आज के दौर में बैठा बिठाया उल्लू जब घर में ही हो तो कोई बाहर क्यूँ ढ़ूंडे.!!!

समय बदलता है

समय बदलता है
लोग बदलते हैं
लोगों की सोच बदलती है
पर नहीं बदलते हैं संस्कार
मान्यताएं
परम्पराएं
चाह जुड़े रहने की अपनी जड़ो से
बचाए रखने की जड़ों को
चाह संस्कारो को आगे पहुँचाने की

समय बदलता है
लोग बदलते हैं
लोगों की सोच बदलती है
तौर-तरीके बदलते हैं
अन्दाज़े बयां बदलते हैं
अब नहीं दिखता वो आकर्षण
अब नहीं दिखता वो समर्पण
लिपटा है सब एक रंग में
दिखावा है संग-संग

समय बदलता है
लोग बदलते हैं
लोगों की सोच बदलती है
बदल जाते हैं आचार, विचार और व्यवहार
अब नहीं है वो अपनाचार
है सब आधुनिकता की बयार
क्यूँ करते हो इतना विचार
लक्ष्मी-पति भी बन जाते है आज उल्लू
हो जाते है बड़े-बड़े भी लल्लू
ना कर पाया कोई आज, आज तक सीधा अपना उल्लू
ना घबराओ आज, आज तुम्हारा ही दिन है लल्लू

Thursday, September 11, 2008

सपना जो ना अपना था

***** सपना जो ना अपना था *****
बीत गया जो एक सपना था
आने वाला पल अपना था
पर आने वाला पल भी एक सपना था
सपना जो ना अपना था

जिन्दगी की चाह थी
आने वाली राह आसान ना थी
सपनों की उड़ान थी
पर जिन्दगी से अनजान थी

सपना लेकर एक सपना आया
जीने का एक सपना लाया
राह एक आसान थी
सपने सी अनजान थी

सपना दूर गगन सा था
सपनों में मगन सा था
सपना टूटा जब सपने में
मैं तो अपनी खटियन में था
-कामोद

Tuesday, September 9, 2008

पर क्या तुम हो पाकिस्तानी?

***** पर क्या तुम हो पाकिस्तानी? *****

जनता के राज में                                                              हो रहा ये कैसा काज                                                      क्यूँ हो रहा ये शोर                                                         राज राज राज

तुमको हिन्दी ना बोलने देंगे                                              मराठी की जिद ना छोड़ेंगे                                                 जैसा बोलें वैसा करोगे                                                       वरना हमारा देश छोड़ोगे

ये देश हमारे बाप की बपौती                                                  बोलती है यहाँ अपनी तूती                                                   हम हैं बड़े ही हठी                                                           बोलो अब जय मराठी

जो हमारी बात ना मानी                                                     सुन लो सारे हिन्दुस्तानी                                                   हिन्दी होगी जानी मानी                                                      पर हमको है इससे परेशानी

रे मूर्ख,                                                                      हिन्दी तो है जानी मानी                                                      अपनी तो है यही निशानी                                                    गर्व है हम हैं हिन्दुस्तानी                                                     पर क्या तुम हो पाकिस्तानी?

हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा                                                   मराठी से नहीं कोई निराशा                                              भाषाएं यहाँ हैं अनेक                                                          पर मेरा भारत तो है एक

मत तोड़ो इस देश को                                                        अपने राजनीति के अखाड़े में                                           भाषा,जाति और क्षेत्र अंधियारे में                                             बहुत कुछ खोया है हमने इसे पाने में

-कामोद

Saturday, September 6, 2008

आपदा और दलाल

*****आपदा और दलाल*****



साधन जितने
दलाल भी उतने
पहुँचे नहीं राशन वहाँ
जरूरत हो इसकी जहाँ
कैसे हो समस्या का समाधान ?
सब जानकर भी हैं अनजान
क्या हो जब हों हम तुम हैरान!!
ये है मेरा प्यारा हिन्दुस्तान
कुछ समझे मेरी जान!!
- कामोद

Wednesday, September 3, 2008

अभी तो हुई है ये शुरुवात

*****अभी तो हुई है ये शुरुवात*****

 बिहार

 

अगस्त 2008 का महिना                                                     हुई दो बड़ी घटना                                                           लगा सूर्य को ग्रहण                                                        हुआ चन्द्र को ग्रहण

अगस्त 2008 का महिना                                                  ज्ञानी कह गये कहानी                                                       अब तो आने वाली है परेशानी                                               जान लो ये है चेतावनी

घटी दुर्घटनाएं घट-घट में                                                  कभी जम्मू                                                                  तो कभी बिहार, बंगाल में

अभी तो हुई है ये शुरुवात                                                 होंगे कई नए आघात                                                        शनि भी लगाए वक्र दृष्टि                                                    जाने क्या होगा हे सृष्टि

यह नहीं कोई देवीय कोप                                                     है यह मानव की  ही रोप                                                 अब चलेगा सरकार का बहाना                                            होगा बिचौलियों का भी आना जाना

विकाश की दौड़ में क्यूँ रहा मुझे ठेल                                      बना दिया तूने मुझको भी रेल                                               अभी तो होंगे और भी कई खेल                                             हे मानव अब अपनी करनी झेल                                       

- कामोद

Tuesday, September 2, 2008

दस साल पहले जो मारे थे शेर

*****दस साल पहले मारे थे जो शेर*****

दस साल पहले मारे थे जो शेर                                           
 वो हो गये अब बब्बर शेर
वो कहते हैं हमने चुराया है उनका शेर                                   
जा के कह दो उनसे शेर हमने भी बहुत मारे हैं
शेर अपना हो या पराया शेर ही होता है
शेर जंगल में हो या पिंज़रे में शेर ही होता है
दस साल पहले मारे थे जो शेर                                             
 वो हो गये अब बब्बर शेर
===============================

*****वफ़ा की उम्मीद***** 

जिनसे थी वफ़ा की उम्मीद                                                
वो बेवफ़ा निकले                                                        
ज़माने की बात छोड़ो                                                      
जब अपने ही ख़फा निकले
सोचा गुलशन से दो फूल हम भी तोड़ लें                              
फूल कम काँटे ही साथ निकले                                       
 जिन्हें हम दिल के करीब समझे थे                                       
वो ही आस्तीन के साँप निकले
कुछ ऐसे भी मिले सफ़र में                                               
जो कदम से कदम मिलाकर चले                                        
ग़म के उस दौर में                                                       
हाथ थामने वाले निकले

Thursday, August 28, 2008

आवारा पागल इंसान

*****आवारा पागल इंसान *****

आतंकवाद जब तब दस्तक देता रहता है. स्थानीय लोग कभी धर्म तो कभी जाति के नाम पर आतंक फैलाते हैं. मरने वाले अक्सर उसी जाति या धर्म के होते है जो आतंक करते हैं. कुछ समय पहले गुजरात मुम्बई में हुए विस्फोटों में मानव बम भी अपना काम कर गये. 

उन्ही सब से प्रेरित हैं ये कुछ शब्द .

आवारा पागल इंसान                                                       जो करता है दूसरों को परेशान                                           जिसका न कोई दीन-ईमान                                            आवारा पागल इंसान

जो करता है समय को बरबाद                                              हो न सकेगा वो कभी आबाद                                                 है न उसे वक़्त की पहचान                                              आवारा पागल इंसान

जो करता है अपनों को बरबाद                                           करता है दूसरों को आबाद                                                    है ऐसा ये पागल इंसान                                                 आवारा पागल इंसान

जो आता है दूसरों के बहकावे में                                          तब न रहता है अपने आपे में                                                है उसकी ज़िंदगी शमशान                                               आवारा पागल इंसान

जो रहता है सदा शक के घेरे में                                          कभी पुलिस तो कभी वकील के झमेले में                               कभी फुटपात तो कभी जेल है उसका मकान                                आवारा पागल इंसान

-कामोद 

Sunday, August 10, 2008

बाल

***** बाल*****

बाल बहुत काम की चीज़ होती है और कभी परेशानी की भी. मैने इसे कुछ यूँ अनुभव किया..

 

बाल सिर में हो तो अदाकारी

बाल सिर में ना हो तो बिमारी 

बाल आँख में जाये तो किरकिरी 

बाल खाने में आ जाये तो उबकारी 

बाल-बाल बचे जब बच आये कही से

बाल की खाल निकले जब खींचे कोई टांग

बाल श्रम बन जाये जब हो जाये काम

बाल विवाह बन जाये जब हो जाये शादी 

बाल साहित्य बन जाये जब बन जाते किताब  

बाल मिठाई बन जाये जब मिल जाये मीठा

बाल सखा अरू बाल क्रीड़ा बाल मन तरसाये

बाल बने बाल जब बाल-बाल मिल जाये.

Monday, June 30, 2008

केक्टस (नागफनी) - कविता


लोग मुझे हैं दुत्कारते
दाना-पानी नहीं खिलाते,
घर में सबसे दूर बैठाते
काँटों का राजा मुझे बतलाते।

पर मैं करता काम भलाई
रखता उनसे दूर बुराई,
फिर क्यूँ मुझको दुत्कार लगाई
ये बात भैया समझ न आई।

सताती गरमी
रूलाता पानी,
बातें करता हूँ खुद से
याद आती अपनी कहानी।

नाम राशि एक जीव है मेरा
नहीं हमारा एक बसेरा,
नाग वो तो फनी है मेरा।

कल की चित्र पहेली का उत्तर है नागफनी (cactus)

Sunday, June 22, 2008

कौन रोकता है तुम्हें--कविता

*****कौन रोकता है तुम्हें*****

कौन रोकता है तुम्हें
आसमॉ छूने के लिए
पर ज़िद ना करो पत्थर मारने की
वापस तुम पर ही गिरेगा, याद रखना

कौन रोकता है तुम्हें
मन्दिर जाने के लिए
पर ज़िद ना करो आग से खेलने की
जल जाओगे, याद रखना

कौन रोकता है तुम्हें
कन्दुक-क्रीड़ा के लिए
पर ज़िद ना करो सचिन,धोनी बनने की
शीशे भी टूटेंगे आपने ही, याद रखना

कौन रोकता है तुम्हें
चाकू-बन्दूक खेलने के लिए
पर ज़िद ना करो इसे आजीविका बनाने की
लादेन, वीरप्पन तुम नहीं, याद रखना.

Thursday, May 29, 2008

खामोशियों का फसाना

*****खामोशियों का फसाना *****

मेरी खामोशियां भी फसाना ढूंढ लेती है
बड़ी शातिर है ये दुनिया बहाना ढूंढ लेती है.

बड़ी शातिर है ये दुनिया बहाना ढूंढ लेती है.
मगर हर आंख फिर सपना सुहाना ढूंढ लेती है.

न चिडि़या की कमाई है न कारोबार है कोई
वो केवल हौसले से आबोदाना ढूंढ लेती है.

समझ पाई न दुनिया हकी अब तक
जो सूली पर भी हंसना मुस्कुराना ढूंढ लेती है.

उठाती है जो खतरा हर कदम पर डूब जाने का
वही कोशिश समन्दर में खजाना ढूंढ लेती है.