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Friday, October 17, 2008

करवाचौथ पर विशेष

*****करवाचौथ पर विशेष*****

यह पोस्ट पिछ्ले साल आज के विशेष पर्व करवाचौथ के अवसर पर लिखी थी. तो देखिए करवाचौथ पर विशेष आखिर क्यूँ मनया जाता है यह विशेष पर्व ...

आज का दिन खास है भारतीयों के लिए. विशेषकर भारतीय नारियों के लिए. आप तो समझ ही गये ना कि मैं ऐसा क्यूँ कह रहा हूँ. आज है ना वह विशेष पर्व (दिन) जिसका हर भारतीय नारी (शादीशुदा) को बड़ी उत्सुकता से इंतजार रहता है.जी हाँ सही समझे करवाचौथ. आज के दिन भारतीय नारी बिना खाये पिये, भूखे प्यासे रहकर अपने पति की लम्बी उम्र के लिए उपवास रखती है. इसके पीछे कई किंवदंतियां प्रचलित हैं. पर ये कुछ खास है.

एक समय की बात है .......
लक्ष्मी जी दिपावली के दिन पृथ्वीलोक में अपने भक्तों के घर आशीर्वाद देने जा रही थी. इधर से उधर , एक भक्त के घर से दूसरे भक्त के घर, फिर तीसरे फिर चौथे.... बारी-बारी सभी भक्तों के घर जा रही थी. सभी भक्त बड़े तन, मन और धन से लक्ष्मी जी की पूजा कर रहे थे. लक्ष्मी जी पर आरती आरतीयां गाई जा रही थी. लक्ष्मी जी खुश होकर आशीर्वाद दे रही थी.

बाहर बैaaठा लक्ष्मी जी का वाहन उल्लू यह सब देख रहा था. उल्लू को बहुत दुख हुआ. उसने सोचा कि वह लक्ष्मी जी का वाहन है फिर भी कोई उसे पूछता नहीं है उल्टा दुत्कारते ही है. लक्ष्मी जी का वाहन ‘उल्लू’ रूठ गया और बोला “आपकी सब पूजा करते हैं , मुझे कोई नहीं पूछता”. लक्ष्मी जी बात समझ गई . लक्ष्मी जी हल्का सा मुस्कराई और बोली “ अब से हर साल मेरी पूजा से 11 दिन पहले तुम्हारी पूजा होगी”. उस दिन सिर्फ उल्लू पूजे जायेंगे.

तब से दिवाली के 11 दिन पहले ‘कड़वा चौथ’ कहकर उल्लू दिवस मनाया जाता है.
आज के जमाने में उल्लू तो आसानी से मिलते नहीं है. पर फिर भी उल्लू दिवस बड़े ही उत्साह से मनाया जाता है. हाँ उल्लू की जगह किसी और ने ले ली है. शायद आज के दौर में बैठा बिठाया उल्लू जब घर में ही हो तो कोई बाहर क्यूँ ढ़ूंडे.!!!

समय बदलता है

समय बदलता है
लोग बदलते हैं
लोगों की सोच बदलती है
पर नहीं बदलते हैं संस्कार
मान्यताएं
परम्पराएं
चाह जुड़े रहने की अपनी जड़ो से
बचाए रखने की जड़ों को
चाह संस्कारो को आगे पहुँचाने की

समय बदलता है
लोग बदलते हैं
लोगों की सोच बदलती है
तौर-तरीके बदलते हैं
अन्दाज़े बयां बदलते हैं
अब नहीं दिखता वो आकर्षण
अब नहीं दिखता वो समर्पण
लिपटा है सब एक रंग में
दिखावा है संग-संग

समय बदलता है
लोग बदलते हैं
लोगों की सोच बदलती है
बदल जाते हैं आचार, विचार और व्यवहार
अब नहीं है वो अपनाचार
है सब आधुनिकता की बयार
क्यूँ करते हो इतना विचार
लक्ष्मी-पति भी बन जाते है आज उल्लू
हो जाते है बड़े-बड़े भी लल्लू
ना कर पाया कोई आज, आज तक सीधा अपना उल्लू
ना घबराओ आज, आज तुम्हारा ही दिन है लल्लू

Monday, September 15, 2008

मेरी मर्जी

***** मेरी मर्जी*****

आखिर लोग क्यूँ नहीं सुधरते? कितना कहा जाये, या लिखा जाये या कुछ भी किया जाये लोग आखिर नहीं मानते. यह सब वैसा ही है जैसा देश का कानून और नियम. बनते हैं पर फाइल तक सीमित. जगह जगह इस तरह के इस्तिहार लगे रहते हैं पर सिर्फ लिखने के लिए. आखिर अपनी मर्जी भी कुछ होती है.

untitled

चित्र साभार यहाँ से लिया गया है.

Wednesday, September 3, 2008

अभी तो हुई है ये शुरुवात

*****अभी तो हुई है ये शुरुवात*****

 बिहार

 

अगस्त 2008 का महिना                                                     हुई दो बड़ी घटना                                                           लगा सूर्य को ग्रहण                                                        हुआ चन्द्र को ग्रहण

अगस्त 2008 का महिना                                                  ज्ञानी कह गये कहानी                                                       अब तो आने वाली है परेशानी                                               जान लो ये है चेतावनी

घटी दुर्घटनाएं घट-घट में                                                  कभी जम्मू                                                                  तो कभी बिहार, बंगाल में

अभी तो हुई है ये शुरुवात                                                 होंगे कई नए आघात                                                        शनि भी लगाए वक्र दृष्टि                                                    जाने क्या होगा हे सृष्टि

यह नहीं कोई देवीय कोप                                                     है यह मानव की  ही रोप                                                 अब चलेगा सरकार का बहाना                                            होगा बिचौलियों का भी आना जाना

विकाश की दौड़ में क्यूँ रहा मुझे ठेल                                      बना दिया तूने मुझको भी रेल                                               अभी तो होंगे और भी कई खेल                                             हे मानव अब अपनी करनी झेल                                       

- कामोद

Sunday, August 31, 2008

Tuesday, August 26, 2008

व्यंग- दोस्ती हो तो ऐसी

***** व्यंग- दोस्ती हो तो ऐसी*****



Monday, August 11, 2008

भगवान ने टैक्स काटा

***** भगवान ने टैक्स काटा*****

यह कहानी मुझे ई-मेल से मेरे मित्र ने भेजी. इसे में उसी तरह यहाँ पर प्रस्तुत कर रहा हूँ ताकि इसके भाव वही रहें. 

A little boy wanted Rs.50 very badly and prayed for weeks, but nothing happened.
Finally he decided to write God a letter requesting the Rs.50. When the postal authorities received the letter addressed to God, INDIA, they decided to forward
it to the President of the India as a joke.

The President was so amused, that he instructed his secretary to send the little boy Rs.20.
The President thought this would appear to be a lot of money (Rs.50) to a little boy,
and he did not want to spoil the kid.


The little boy was delighted with Rs.20, and decided to write a thank you note to God,
which read:
"Dear God: Thank you very much for sending the money.
However, I noticed that you sent it through the
Rashtrapati Bhavan in New Delhi , and those donkeys deducted Rs.30 as tax ... "

Tuesday, August 5, 2008

मेरी भैंस को डंडा क्यूँ मारा

***** मेरी भैंस को डंडा क्यूँ मारा *****

पिछले दिनों ब्लॉग जगत में छींटाकशी, आरोप प्रत्यारोप, तू-तू मैं-मैं देखने को मिली. तूने मेरे ब्लॉग में टिप्पणी क्यूँ की!!. नहीं चाहिए मुझे किसी की सहानुभूति. $#@%&*+-! मैं किसी के लिए नहीं लिखता. वगैरा वगैरा...

ब्लॉग क्यूँ लिखते हैं?? क्या आधार है लिखने का जब पाठक ही न हों! खाली पीली टाईम खोटी करने से क्या फायदा.

जब आप लिखते हैं तो आलोचना, समालोचना के लिए सहज रूप से सकारात्मक मानसिकता के साथ तैयार रहना चाहिए. अगर मेरी भैंस को डंडा क्यूँ मारा, तेरे बाप का वो क्या करती थी कहकर लट्ठ चलाने लगे तो ब्लॉगिंग का उद्देश्य समाप्त ही हो जायेगा.

ब्लॉग एक व्यक्तिगत डायरी है. एक दैनिक प्रवचन मंच. एक सहयोगपूर्ण स्थान. एक राजनैतिक सोपबॉक्स. एक ताज़ा समाचार आउटलेट. लिंकों का एक संग्रह. आपके अपने निजी विचार. दुनिया को दिए जाने वाली ज्ञापन. वो सब कुछ जो आप चाहते हैं.

आपका ब्लॉग वैसा ही है जैसा आप उसे चाहते हैं. सामान्य शब्दों में, ब्लॉग एक वेब साइट है, जहाँ आप नियमित तौर पर सामग्री लिखते हैं. नई सामग्री सबसे ऊपर दिखती है, ताकि आपके विजिटर पढ़ सकें कि नया क्या है. इसके बाद वे उस पर टिप्पणी कर सकते हैं या उसे लिंक कर सकते हैं या आपको ईमेल कर सकते हैं. या नहीं.

अब यह ब्लॉगर पर निर्भर करता है कि वो किसे पढ़ाये किसे नहीं. फ्री की चीज है ब्लॉगिंग तो ठेले जाओ कौन रोकता है. पर आ बैल मुझे मार का नारा क्यूँ लगाते हो.

बहुत से लोग बस अपने विचारों को व्यवस्थित करने के लिए ब्लॉग का प्रयोग करते हैं, जबकि दूसरे प्रभावकारी, पूरी दुनिया के हजारों लोगों पर अपनी छाप छोड़ते हैं. प्रोफेशनल और शौकिया पत्रकार ब्लॉगों का उपयोग नवीनतम समाचार प्रकाशित करने के लिए उपयोग करते हैं, जबकि व्यक्तिगत पत्रकार अपने अंदरूनी विचारों की अभिव्यक्ति के लिए.

यहीं से ब्लॉगियाते हुए बहुत से ब्लॉगर आज ब्लॉग रत्न बन गये. वैसे भी हीरे की कद्र जौहरी ही जानता है. जब तक सोना आग में तपेगा नहीं तब तक उसमें निखार कैसे आयेगा. टिप्पणियाँ और टिपियाने वाले ब्लॉगिंग के जौहरी ही होते है. अपन तो आग में कूदने के लिए तैयार बैठा है बस जौहरी की तलाश है. देखो कौन सा जौहरी आता है.

नोट- कृपया इस लेख को व्यक्तिगत रूप में ना लें. - कामोद

Tuesday, June 10, 2008

आदमी और चिम्पांजी

*****आदमी और चिम्पांजी *****

आदमी और चिम्पांजी मे बहुत सी समानता हैं। बैज्ञानिक कह भी चुके हैं और सिद्ध भी कर चुके हैं। आज हम भी कहते हैं अपने अंदाज मे। आप भी देखिये ।


Thursday, May 8, 2008

ये आग कब कब बुझेगी ठाकुर...

बिस्फोट से निकली चिंगारी अब थमने का नाम ही नहीं ले रही है. आरोप-प्रत्यारोप जारी है. चिट्ठा नामक गोलाबारी जारी है.. दर्शक दीर्घा पर बैठे सम्माननीय चिट्ठाकार तथा अन्य लोग मज़ा लेकर मुस्कुरा रहे हैं. बिस्फोट से निकली चिंगारी की वास्तविकता क्या है ये तो बिस्फोट करने वाले ही बता सकते है या ब्लोगवाणी के कर्ता धर्ता....

हम तो बस इस रोचक जानकारी में नमक मिर्च लगाकर आप तक पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं..वैसे न्यूज चैनल वाले भी आजकल यही करते हैं. इस चिट्ठा युद्ध में चिट्ठा जगत को कितना लाभ हुआ इसका आकलन अभी बाकी है. जहाँ एक ओर चिट्ठा युद्ध चल रह है वहीँ अभी- अभी मिली ताज़ा ज़ानकारी के भड़ासी अपनी भड़ास निकाल कर पंगेबाज से पंगेबाजी कर रहे हैं. सीधे शब्दों मे अपना उल्लू सीघा कर रहे हैं और बहती गंगा मे हाथ धो रहे है...

वहीं सुनीता जी इस घमासान में दाल रोटी चावल के साथ शाही मलाई कोफ्ता करी के साथ अपनी दुकान चलाने की तैयारी कर रही हैं.. बलबिन्दर जी आज को छोड़्कर कल की दुनिया में रोबोट के साथ कभी खुशी कभी गम खेल रहे हैं और 25 साल बाद भी घर के आगे से दीवार ना हटने का का शोक मना रहे हैं. दूसरी ओर शिव जी अपनी चावल की दुकान खोलकर चावल का अर्थशाष्त्र समझा रहे है... तो गुरनाम जी मुझे लिखना नहीं आता कहकर नये सफर की तैयारी कर रहे हैं.....

इसी के साथ मैं आपको आपकी दुनियां मे वापस लिये चलता हूँ...