Monday, June 30, 2008

केक्टस (नागफनी) - कविता


लोग मुझे हैं दुत्कारते
दाना-पानी नहीं खिलाते,
घर में सबसे दूर बैठाते
काँटों का राजा मुझे बतलाते।

पर मैं करता काम भलाई
रखता उनसे दूर बुराई,
फिर क्यूँ मुझको दुत्कार लगाई
ये बात भैया समझ न आई।

सताती गरमी
रूलाता पानी,
बातें करता हूँ खुद से
याद आती अपनी कहानी।

नाम राशि एक जीव है मेरा
नहीं हमारा एक बसेरा,
नाग वो तो फनी है मेरा।

कल की चित्र पहेली का उत्तर है नागफनी (cactus)

6 comments:

Anonymous said...

bhut sundar likha hai. badhai ho. aapne aj ye kavita likhakar vakai bhut accha kiya. pahali bar kektas ki kavita padi. sachmuch bhut badhiya.
accha to ye phool kektas ka hai.

Udan Tashtari said...

जीवन भर न हल कर पाते आपकी पहेली. :)

अनीता सैनी said...

जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की शनिवार(२९-०२-२०२०) को शब्द-सृजन-१० ' नागफनी' (चर्चाअंक -३६२६) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी

मन की वीणा said...

वाह पहेली जैसी खुबसूरती लिए सुंदर रचना।

Anita Laguri "Anu" said...

अपनी ही कहानी कहता नागफनी बेहद द्रवित करने वाली कविता बहुत ही अच्छा लिखा आपने.।

प्रिया सिंह said...

Your post is osm and helpful me . Thanks for this post . Love and respect
Simran kaur

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