Sunday, June 22, 2008

कौन रोकता है तुम्हें--कविता

*****कौन रोकता है तुम्हें*****

कौन रोकता है तुम्हें
आसमॉ छूने के लिए
पर ज़िद ना करो पत्थर मारने की
वापस तुम पर ही गिरेगा, याद रखना

कौन रोकता है तुम्हें
मन्दिर जाने के लिए
पर ज़िद ना करो आग से खेलने की
जल जाओगे, याद रखना

कौन रोकता है तुम्हें
कन्दुक-क्रीड़ा के लिए
पर ज़िद ना करो सचिन,धोनी बनने की
शीशे भी टूटेंगे आपने ही, याद रखना

कौन रोकता है तुम्हें
चाकू-बन्दूक खेलने के लिए
पर ज़िद ना करो इसे आजीविका बनाने की
लादेन, वीरप्पन तुम नहीं, याद रखना.

3 comments:

Udan Tashtari said...

सही है-सीख.

Anonymous said...

bhut hi sahi likh hai.likhate rhe.

राज यादव said...

मजा आ गया . बहुत ही अच्छी रचना.