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Sunday, May 9, 2010

कसाब.... फ़ाँसी... सिस्टम.... बेबसी....

भारतीय न्याय व्यवस्था में एक रिकॉर्ड .....

कसाब... एक आतंकी ...

सबूत जगजाहिर... मरने वाले तकरीबन 160... 600 गवाह...

सबकी मांग एक.... कसाब को फ़ाँसी...

एक साल में फैसला.... एक एहसास, एक विस्वास न्याय व्यवस्था पर....

चेहरे पर झलकती खुशी....

पर एक संशय... एक उदासी ...

उन चेहरों पर जो खो चुके अपनों को...

खो गये उनकी यादों में... याद आने लगा वो पल...

वो मंजर .... जो कभी गुजरा था उन आखों से...

पूछती हैं वो बेबस निगाहें... वो सुबह कब आयेगी!! ...

कब वो दिन कब आयेगा जब न्यायिक फैसला अपने अंजाम तक पहुँचेगा...

निगाहें डूब जाती हैं आंसुओं के सागर में..

दिल को तसल्ली देकर.... वो सुबह कभी तो आयेगी....

Wednesday, September 16, 2009

हिन्दी की टांग तोड़ते ये अनुवादक

*****हिन्दी की टांग तोड़ते ये अनुवादक *****

अनुवादक का काम होता है मूल लेख का अनुवाद करना. लेकिन अनुवादित बिषय का अर्थ ही बदल जाये तो क्या कहेंगे. ऐसा ही कुछ हुआ मशीन अनुवदित कुछ लेखों में. मशीन अनुवादक अंग्रेजी शब्दों का अनुवाद मात्र करता है जिससे मूल लेख का भावार्थ बदल जाता है. समझ पाना टेड़ी खीर है.

लेख के अंत में लिखा है मशीन अनुवादित शब्दों में

मशीन अनुवाद एक स्वचालित सेवा द्वारा और अनुवाद की सटीकता प्रदान कर रहे हैं नहीं मानव अनुवाद के मानकों करने के लिए कर रहे हैं.  मशीन अनुवाद छोटे या नहीं अंग्रेजी कौशल के साथ लोगों द्वारा उपयोग के लिए प्रदान की जाती हैं.  हम जानते हैं कि लोगों को अंग्रेजी में बल्कि तो मशीन पृष्ठों का अनुवाद अंग्रेजी पृष्ठों का उपयोग प्रवीण की सलाह देते हैं.

इस वेबसाइट के एक लेख से कुछ शब्द

अपने बिजली के मिश्रक, या एक हाथ मिश्रक साथ के कटोरे में, मलाई मक्खन और चीनी मिनट प्रकाश और (2 - 3 फुज्जीदार तक).  जब तक शामिल अंडा और वेनिला निकालने और हरा जोड़ें. शामिल जब तक कद्दू प्यूरी में मारो (इस बल्लेबाज इस बिंदु पर) curdled दिखेगा.  धीरे धीरे, केवल संयुक्त जब तक मिश्रण में आटा मिश्रण जोड़ें. में हिलाओ को काट और सूखे cranberries पेकान toasted.  इस पैन और के बारे में 30 के लिए सेंकना - 35 मिनट या एक दन्तखुदनी सलाखों के केंद्र में प्रवेश कराया तक तैयार में बल्लेबाज फैलाओ बाहर साफ आता है. ओवन और जगह से शांत करने के लिए एक तार रैक पर निकालें. 16 में काट - 2 इंच (5 सेमी) सलाखों.

ऐसी ही एक और वेबसाइट देखने को मिली जिसको यहाँ देखा जा सकता है. ऐसी कितनी ही वेबसाइट है जिनको मशीन अनुवादक की सहायता से वांछित भाषा में देखा और पढ़ा जा सकता है. इस तरह के अनुवाद से जानकारी लेने वाला क्या समझेगा, मेरी समझ से बाहर की बात है.

Friday, September 11, 2009

अम टो मिष्टर हो गया अब तो यूरप जाना मांगटा है

*****अम टो मिष्टर हो गया अब तो यूरप जाना मांगटा है*****

पहाड़ों में अंग्रेजों के आने के साथ ही कुछ सामाजिक परिवर्तन होने लगे। खासकर उन लोगों में जो अंग्रेजों के धरों में नौकरी करते थे। हिमालय क्षेत्र के कुछ परिवारों ईसाई धर्म स्वीकारा और चर्च बने। पियानो, हार्मोनियम, फीडल, बिगुल या मशकबीन (बैगपाईपर) का हिमालय पर आगमन हुआ।

नैनीताल से प्रकाशित पहाड़(1999) के अनुसार लोगों के रहन सहन, खान पान, पहनावे और मकानों में भी इसका असर दिखने लगा। लोगों में 'साहब' बनने की चाह के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा का भ्रष्ट उच्चारण होने लगा। 18वीं सदी के प्रसिद्ध नाटककार भवानीदत्त थपल्याल के नाटक "प्रह्लाद" का अंश है जिसमें तत्कालीन समय में अंग्रेजों के पहाड़ी क्षेत्र में आने के बाद के सामाजिक परिवर्तनों को बताने की कोशिश की गई है।

अम टो मिष्टर हो गया अब तो यूरप जाना मांगटा है

अम टो मिष्टर हो गया अब तो यूरप जाना मांगटा है।
डाल भाट साग रोटि ये तो खावै काला लोग।
अंडा मुर्गी और शराब मिष्टर खाना मांगता है॥

माटा पिटा वा चाचा चाची ये टो पुकारै काला लोग।
पा पा मामा अंकिल आंट मिष्टर केना मांटता है॥

भाई बहन क्या बेटा बेटी एसा बोले काला लोग़।
ब्रादर सिष्टर सन्नैड डौटर मिष्टर बोलना मांटता है॥

अंगा चोगा ढीला ढाला ये टो पैने काला लोग।
कोट फाटा हो पीछे से मिष्टर पेन्ना मांटता है॥

टोपी ढोटी कुर्टा गुलबन्ड ये टो पैने काला लोग।
हैट पैंट शर्ट कौलर मिष्टर पेन्ना मांटता है॥

खाटे पीटे पूजा कर्टे चौका दे के काला लोग।
ई टिं ड्रिं किं होटल में मिष्टर टेबुल मांटता है॥

पाखाने में चूटड़ ढोवै जिमी पै हग्ने वाला काला लोग।
हग्गा मूटा टांग उठा कर मिष्टर पोंछना मांटता है॥

ढ़ोलक टबला टुरी सिटार ये टो बजा वै काला लोग।
हार्मोनियम बिगुल फीडल हम्म बजाना मांगटा है॥

Wednesday, September 2, 2009

मौजा ही मौजा: देखा है ऐसा कभी

  ***** मौजा ही मौजा: देखा है ऐसा कभी*****

 

वाशिंग मशीन टोइलेट: कभी देखा है वाशिंग मशीन का ऐसा सदुपयोग.

अण्डरबैड टी.वी.: टी.वी. अब आपके खटिया में. इसे खटिया के नीचे डाला जा सकता है. मौज़ा ही मौज़ा.

सिगरेट मोबाईल: चाइना का बना यह मोबाइल देखने में सिगरेट के पेकिट की तरह लगता है.

चेतावनी सूचक घड़ी: घड़ी जो बताती है कि आपने ज्यादा पी ली है. और पियोगे तो मर जाओगे.

depressing-watch

सबसे महंगा फेशियल: इस फेशियल में 24 कैरेट सोने प्रयोग किया जाता है.

gold-facial

ईको-फ्रेंडली गाड़ी: 4 लोगों के लिए डिजाइन गैस से चलने वाली यह गाड़ी ईको-फ्रेंडली है.

amazing-gas-mileage

स्रोत: गूगल सर्च

Saturday, August 15, 2009

स्वतंत्रता दिवस- स्वतंत्रता के बदलते मायने और इसका स्वरूप

*****स्वतंत्रता दिवस- स्वतंत्रता के बदलते मायने और इसका स्वरूप*****

स्वतंत्रता मतलब आज़ादी..... आज़ादी किसी कैद से, किसी पिंजरे से.. 62 साल पहले हम भारतीय भी आज़ाद हुए थे विदेशी राजनीति और विदेशी वर्चस्व से... नयी उमंग नये सपने.... अपनेपन का अहसास...

आज़ादी से पहले संधर्ष एक गुलामी से था.... विदेशी वर्चस्व और तानाशाही से था. बढ़ते अत्याचार और दोहरी राजनीति के विरूद्ध था... संधर्ष अपने हक़ और अधिकार के लिए था जो अपने होते हुए भी अपने नहीं थे... दाता होते हुए भी याचक बन गये थे...

हमारी संस्कृति 'अतिथि देवो भव:' जिस पर हमें कभी गर्व था और आज भी है हमारे लिए अभिशाप बन गई... हम लुटते रहे पर उफ़ तक नहीं की.... सोने की चिड़िया से पिंज़रे की चिड़िया बन गये...

पानी सर से ऊपर गया लुटने का अहसास हुआ पैर से धरती और सर से आकाश गया फिर आजादी का संधर्ष हुआ कुछ लड़े कुछ मिट गये गरम, नरम और उग्र दल बन गये.

गाँधी, नेहरू, सुभाष, आदि के संधर्ष और चन्द्रशेखर, भगत सिंह, राजगुरू और बिसमिल आदि के बलिदान से आज़ादी मिली.. आज़ादी मिली तो राजनीति शुरू हो गई.. पाकिस्तान बन गया... देश में अन्दरूनी राजनीति शुरू हो गई.. सता संधर्ष और राजनीति की... सरदार पटेल ने अपना राजनितिक बुद्धि-कौशलता से देश को एक डोर में पिरोया..

आज भी हम स्वतंत्र हैं ... गर्व है हमें अपनी आजादी पर ... पर गर्व नहीं है अपने राजनेताओं पर.. हर कोई नेता बनने को तैयार है.. बाहुबली, डाकू-लुटेरे, सजायाफ़ता, तथाकथित सामजिक ठेकेदार और छुटभैये.. सभी राजनीति से अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं...

हम स्वतंत्र है... इसलिए दंगे-तोड़फोड़ करना हमारा अधिकार है .. अभिव्यक्ति का अधिकार.. कुछ भी हो तो आग लगाना, जाम लगाना, सरकारी सम्पत्ति तोड़ना... अपहरण करना, हत्या-बलात्कार करना, लूट मारपीट करना तथाकथित लोगों का अधिकार बन गया है...

हम स्वतंत्र है... इसलिए जो चाहते हैं कर सकते हैं.. चाहे भूत-प्रेत, सेक्स और व्यक्तिगत मुद्दों के नाम पर टी. आर. पी. हो या फिल्म के नाम पर कुछ भी परोस देना... सब चलता है...

हम स्वतंत्र हैं इसलिए आज़ादी और समानता हमारा अधिकार है... अधिकार मांगने के लिए प्रदर्शन... समलैंगिकता जैसे संवेदनशील बिषय पर बदलते विचार और उस पर कानून की मुहर...

स्वतंत्रता का भरपूर उपयोग वो भी करते हैं जो करप्शन कर रहे हैं... नकली को असली बनाते हैं... वो लूटते है हम लुटते हैं ... जानते हैं फिर भी पिटते हैं... लुटते हैं फिर भी डरते हैं... खुश रहते हैं चलो आज तो हम बच गये....


इतने सालों बाद स्वतंत्रता के सवरूप बदल गया है. स्वतंत्र हैं फिर भी स्वतंत्रता की तलाश है...

अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं । सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं ॥

Friday, August 14, 2009

बोलो बांके बिहारी लाल की जै

***** बोलो बांके बिहारी लाल की जै*****

आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी है. इस अवसर पर अधिकांश लोग व्रत एवं पूजा पाठ करते हैं. मन्दिरों में कीर्तन-भजन होता है. भक्तजन अपनी श्रद्धा का परिचय देते हुए कई घण्टे पंक्तिबद्ध दर्शनार्थ रहते हैं. वृन्दावन, मथुरा और गोकुल में आज के दिन श्रद्धा का सैलाब उमड़ता है. 'बोलो बांके बिहारी लाल की जै' .

मथुरावासी श्रीकृष्ण जन्मोत्सव में एक दिन पहले से ही नाचते गाते हैं. जहाँ कृष्ण का जन्म हुआ था. रात 12 बजे अष्टमी को जन्म होने के बाद वासुदेव सुरक्षा कारणों से कृष्ण को गोकुल छोड़ आते हैं जहाँ पहुँचते- पहुँचते सुबह के चार बज जाते है. हिन्दु मान्यता के अनुसार 4 बजे बाद नया दिन शुरू हो जाता है. यही कारण है कि श्रीकृष्ण जन्मोत्सव हर साल दो बार मनाया जाता है. 'बोलो जय श्रीकृष्ण' .

श्रीकृष्ण जन्मोत्सव राजकीय और राष्ट्रीय रूप में 'वैष्णव मत ' के अनुसार मनाई जाती है क्योंकि गोकुल निवासी और नन्द जी वैष्णव थे. इस अवसर पर वृन्दावन के भक्त कृष्ण, राधा और गोपियों के खेल करते हैं और झांकियां निकालते हैं . राधा और कृष्ण का प्रेमानुराग इतना अधिक और प्रसिद्ध हुआ कि आज भी राधा-कृष्ण आज भी अलग नहीं हो पाये. 'बोलो राधे-कृष्ण' . वृन्दावन में आज बड़े-बड़े बाबाओं और महात्माओं के आश्रम जगह-जगह देखे जा सकते हैं.

इस अवसर में व्रती भक्त फलाहार करते हैं जिसमें अन्न नहीं खाते हैं. कुछ नमक नहीं खाते तो कुछ सेंधा नमक का उपयोग करते हैं. आलू, साबूदाना, कोटू का आटा आदि से विभिन्न पकवान बनाये जाते हैं. मीठे आहार के रूप में सोंठ, अजवाईन, हल्दी, सूखा अनारियल, चीनी, खाने वाला गोंद, सूखे मेवे आदि मिलाकर प्रसाद 'पजीरी' बनाया जाता है. जिसे सूखे रूप में और मिठाई की तरह बनाकर खाया जाता हैं.

सभी भक्तजनों को जय जन्माष्टमी की शुभकामनाएं. 'बोलो बांके बिहारी लाल की जै'.

Thursday, January 1, 2009

हैप्पी न्यू ईयर आज अंग्रेजी में

*****हैप्पी न्यू ईयर आज अंग्रेजी में*****

साल का पहला दिन, पहली सुबह , बधाईया , एस एम एस की लाइन , फोन पर बधाईयों का सिलसिला। सभी चिट्ठे खुशियों और बधाईयों से भरपूर । पर हैप्पी न्यू ईयर है क्या बताते हैं आज वो भी अंग्रेजी में ।

Wish You and Your Family a Very Very "Happy New Year 2009"

Meaning of Happy New Year in my views:

H ours of happy times with friends and family
A bundant time for relaxation
P rosperity
P lenty of love when you need it the most
Y outhful excitement at lifes simple pleasures
N ights of restful slumber (you know - don't worry be happy)
E verything you need
W ishing you love and light
Y ears and years of good health
E njoyment and mirth
A angels to watch over you
R embrances of a happy years!!!


Always do your best and one day definately you will get your destination

My Best Wishes to you to Achieve Your Goal/Target in this new Year २००९




Monday, December 1, 2008

नो केस, नो चार्जशीट. हैंग टिल डैथ.

*****नो केस, नो चार्जशीट.  हैंग टिल डैथ.*****

मुंबई पर हमला करने वाले आतंकियों में से जिंदा पकड़ा गया मोहम्मद अजमल उर्फ मोहम्मद अमीर कसब अब खाना खाने से इनकार कर रहा है. वह पुलिस से अब खुद को मार दिए जाने के untitled लिए गिड़गिड़ा रहा है.  पुलिस उससे पूछताछ करने की कोशिश कर रही है.

क्यूँ नहीं इस समय पर ऐसे आतंकी का नारको टैस्ट और लाई डिटेक्टर टैस्ट  किया जाता. जबकि मांलेगाँव धमाके में पकड़े गये आरोपियों का और आरूषि हत्याकांड में पकड़े गये आरोपी कृष्णा का नारको टैस्ट और लाई डिटेक्टर टैस्ट बिना न्यायिक अनुमति के किया जाता है.

इस तरह के आपराधिक मामले के आरोपीयों, जो सीधे पकड़े गये और जिन पर आरोप सिद्ध करने जैसी बाध्यता नहीं होनी चाहिए, को त्वरित कार्यवाही करते हुए बिना किसी संकोच के सजाए मौत दे देनी चाहिए. नो केस, नो चार्जशीट.  हैंग टिल डैथ. कही ऐसा ना हो कि ये भी अफ़ज़ल गुरू जैसा केस बन कर रह जाये!!!

ऐसे संवेदनशील बिषय पर हमारे राजनेता अपनी राजनितिक रोटियाँ सेकने का काम करते आये है. आरोप-प्रत्यारोप, बयानबाजी करना तो पुरानी बात हो गयी है. जब सांसदों की सेलरी बड़ाने की बात आती है तो सब एक साथ खड़े नज़र आते हैं. राष्ट्रीय एकता की बात सभी करते हैं. पर जब कठोर कानून बनाने जैसी बात आती है तो बहस शुरू हो जाती है. जब आपको पता है कि पकड़ा गया व्यक्ति आतंकवादी ही है तो वहाँ बहस करने की जरूरत क्यूँ पड़ती है? क्यूँ सज़ा पाने के बाद भी अफ़ज़ल गुरु आज जिन्दा है. और भी ना जाने कितने मामले हैं जो हम भूल जाते हैं.  न्यायिक व्यवस्था को बदलना होगा ताकि मामले सालों तक ना खिंचे और अपराधी का राम नाम सत्य हो जाये!!

Friday, November 28, 2008

कहाँ गये राज ठाकरे अब!!!

*****कहाँ गये राज ठाकरे अब!!!*****

देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई पर आतंकियों का अब तक का सबसे बड़ा हमला हुआ. ताज और ओबेरॉय सहित 10 से ज्यादा जगहों को निशाना बनाया गया. जिसमें 100 से ज्यादा लोग अपनी जान गवां बैठे. इसी आतंकी हमले से लोहा लेते हुए ए.टी.एस. प्रमुख हेमंत करकरे  सहित 14 जाबांज सिपाही शहीद हो गये. ऐसे ज़ांबाज़ सिपाहियों को सलाम.mt

इस हमले से मुम्बई का जनजीवन ठप सा हो गया. स्कूल, कॉलेज, ऑफिस सभी बन्द कर दिये गये. सेबी ने शेयर मार्केट भी बन्द कर दिया. कभी ना सोने और रूकने वाली मुम्बई ठहर गई. विदेशी सैलानियों पर डर और खौफ आसनी से देखा जा सकता था. इंगलैंड की क्रिकेट टीम बीच में ही वापस जाने लगी.

इस आतंकी हमले के बाद नेताओं के बयान आने स्वभाविक थे. कई सम्माननीय नेताओं ने मुम्बई का दौरा किया. पर जिस नेता की टिप्पणी आने का इंतजार था वो पता नहीं कहाँ गायब हो गया. कुछ महिनों पहले मुम्बई और देश को भाषा और क्षेत्र के नाम पर बाँटने वाले और मुम्बई में उत्तर भारतीयों के खिलाफ आग उगलने वाले राज ठाकरे इस समय कहाँ गये.  कहाँ गये मनसे के कार्यकर्ता. कोई प्रतिक्रिया नहीं आई उनकी ओर से जो मुम्बई को अपनी जागीर बताते थे. जबकि राज ठाकरे जो जेड सुरक्षा दी गई है.ये बड़ी विडम्बना की बात है कि देश को बाँटने की बात करने वाले को इतना बडा सुरक्षा घेरा दिया गया है.

आखिर क्यूँ और कैसे भारत में आतंकी बड़ी आसानी से प्रवेश कर जाते हैं?. मेरा मानना है कि राजनीति और भ्रस्टाचार इसके लिए दोषी है. अगर आप यहाँ कोई गलत काम करते हैं और गलती से पकड़े जाते हैं तो आप लेन-देन के माध्यम से आसानी से बच सकते हैं.  

राजनीति और विशेषकर वोट की राजनीति ने कड़े फैसले लेने से हमेशा रोका है. संसद पर हमले के दोषी पाये गये अफज़ल गुरु को फाँसी की सज़ा दिये जाने के बाद भी आज वो जिन्दा है. आखिर क्यूँ?? क्युँ नहीं भारत में अमेरिका की तरह कडे फैसले लेने का साहस है? क्यूँ भारत में देश की सुरक्षा के नाम पर खिलवाड़ होता है जबकि अमेरिका में सुरक्षा के लिए भारत के रक्षा मंत्री के कपड़े उतारने से भी परहेज नहीं किया जाता है. क्यूँ भारत में वोट की राजनीति खेली जाती है जबकि अमेरिका विरोध के बाद भी इराक के राष्ट्रपति को  फ़ाँसी दे दी जाती है.? 

Friday, October 17, 2008

करवाचौथ पर विशेष

*****करवाचौथ पर विशेष*****

यह पोस्ट पिछ्ले साल आज के विशेष पर्व करवाचौथ के अवसर पर लिखी थी. तो देखिए करवाचौथ पर विशेष आखिर क्यूँ मनया जाता है यह विशेष पर्व ...

आज का दिन खास है भारतीयों के लिए. विशेषकर भारतीय नारियों के लिए. आप तो समझ ही गये ना कि मैं ऐसा क्यूँ कह रहा हूँ. आज है ना वह विशेष पर्व (दिन) जिसका हर भारतीय नारी (शादीशुदा) को बड़ी उत्सुकता से इंतजार रहता है.जी हाँ सही समझे करवाचौथ. आज के दिन भारतीय नारी बिना खाये पिये, भूखे प्यासे रहकर अपने पति की लम्बी उम्र के लिए उपवास रखती है. इसके पीछे कई किंवदंतियां प्रचलित हैं. पर ये कुछ खास है.

एक समय की बात है .......
लक्ष्मी जी दिपावली के दिन पृथ्वीलोक में अपने भक्तों के घर आशीर्वाद देने जा रही थी. इधर से उधर , एक भक्त के घर से दूसरे भक्त के घर, फिर तीसरे फिर चौथे.... बारी-बारी सभी भक्तों के घर जा रही थी. सभी भक्त बड़े तन, मन और धन से लक्ष्मी जी की पूजा कर रहे थे. लक्ष्मी जी पर आरती आरतीयां गाई जा रही थी. लक्ष्मी जी खुश होकर आशीर्वाद दे रही थी.

बाहर बैaaठा लक्ष्मी जी का वाहन उल्लू यह सब देख रहा था. उल्लू को बहुत दुख हुआ. उसने सोचा कि वह लक्ष्मी जी का वाहन है फिर भी कोई उसे पूछता नहीं है उल्टा दुत्कारते ही है. लक्ष्मी जी का वाहन ‘उल्लू’ रूठ गया और बोला “आपकी सब पूजा करते हैं , मुझे कोई नहीं पूछता”. लक्ष्मी जी बात समझ गई . लक्ष्मी जी हल्का सा मुस्कराई और बोली “ अब से हर साल मेरी पूजा से 11 दिन पहले तुम्हारी पूजा होगी”. उस दिन सिर्फ उल्लू पूजे जायेंगे.

तब से दिवाली के 11 दिन पहले ‘कड़वा चौथ’ कहकर उल्लू दिवस मनाया जाता है.
आज के जमाने में उल्लू तो आसानी से मिलते नहीं है. पर फिर भी उल्लू दिवस बड़े ही उत्साह से मनाया जाता है. हाँ उल्लू की जगह किसी और ने ले ली है. शायद आज के दौर में बैठा बिठाया उल्लू जब घर में ही हो तो कोई बाहर क्यूँ ढ़ूंडे.!!!

समय बदलता है

समय बदलता है
लोग बदलते हैं
लोगों की सोच बदलती है
पर नहीं बदलते हैं संस्कार
मान्यताएं
परम्पराएं
चाह जुड़े रहने की अपनी जड़ो से
बचाए रखने की जड़ों को
चाह संस्कारो को आगे पहुँचाने की

समय बदलता है
लोग बदलते हैं
लोगों की सोच बदलती है
तौर-तरीके बदलते हैं
अन्दाज़े बयां बदलते हैं
अब नहीं दिखता वो आकर्षण
अब नहीं दिखता वो समर्पण
लिपटा है सब एक रंग में
दिखावा है संग-संग

समय बदलता है
लोग बदलते हैं
लोगों की सोच बदलती है
बदल जाते हैं आचार, विचार और व्यवहार
अब नहीं है वो अपनाचार
है सब आधुनिकता की बयार
क्यूँ करते हो इतना विचार
लक्ष्मी-पति भी बन जाते है आज उल्लू
हो जाते है बड़े-बड़े भी लल्लू
ना कर पाया कोई आज, आज तक सीधा अपना उल्लू
ना घबराओ आज, आज तुम्हारा ही दिन है लल्लू

Thursday, October 16, 2008

स्वर्ग और नर्क

***** स्वर्ग, नर्क, पुनर्जन्‍म और हम *****

 

उपनि‍षदों में कर्म तथा पुनर्जन्‍म की अवधारणाओं को एक सि‍द्धान्‍त का रूप दि‍या गया है. कठोपनि‍षद् के अनुसार कि‍ मृतक की आत्‍मा नया शरीर (पुनर्जन्म)लेती है. आत्‍मा अपने कर्म तथा ज्ञान के अनुसार जड़ वस्‍तुओं जैसे पेड़ या पौधों का स्‍वरूप भी ग्रहण कर सकती है.

 

न जायते भ्रियते भ्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोअयं पुराणों न हन्यते हन्यमाने शरीरे।।
वासांसि जीर्णानियथा विहाय नवानि गृहान्ति नरोअराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही।।

मृत्यु से आत्मा का अन्त नहीं होता, आत्मा विभिन्न योनियों में जन्म लेती है. चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करने के पश्चात् जीव मनुष्य जैसे दुर्लभ शरीर को प्राप्त करता है. योनियों में क्रमशः विकासवा द के सिद्धांत का पालन किया जाता है. अर्थात् स्वेदज, उद्भिज, अन्डज, जरायुज क्रमशः एक के बाद दूसरी कक्षा की योग्यता और शक्ति बढ़ती जाती है. स्वेदज जीव में जितना ज्ञान और विचार है, उसकी अपेक्षा उद्भिजों की योग्यता बढ़ी हुई है. इसी प्रकार योग्यता बढ़ते-बढ़ते शरीरों की बनावटी में भी अन्तर होने लगता है और पूर्ण उन्नति एवं विकास होने पर मानव शरीर प्राप्त हो जाता है. मनुष्य योनि इस संसार की सर्वश्रेष्ठ योनि है. अन्ततः इसी जीव नीचे से ऊपर की ओर या तुच्छता से महानता केaa ओर लगातार बढ़ते चले आ रहे हैं. आत्मा ही बढ़ते-बढ़ते परमात्मा हो जाती है. अर्थात पुनर्जन्म से मुक्त हो जाती है.
पुनर्जन्म की धुरी नैतिकता में रखी गई है जिससे समाज तथा व्यक्ति दोनों को ही लाभ होता है. इसमें विश्वास करने वाला व्यक्ति यह मानता है कि 'मेरी जैसी ही आत्मा सबकी है और सबकी जैसी ही मेरी आत्मा है.' मतलब ये कि ''मेरी आत्मा की अवस्था भूतकाल में अन्य जीवों जैसी हुई है और भविष्य में भी हो सकती है. सभी जीव किसी न किसी समय मेरे-माता-पिता आदि सम्बंधी रहे हैं और भविष्य में भी रह सकते हैं.''
इससे मनुष्य का सब जीवों के प्रति प्रेम और भ्रातृत्व भाव बढ़ता है इससे यह भी पता चलता है कि जीव की कोई योनि शाश्वत नहीं है. हिन्दू धर्म के अनुसार परलोक में अनंतकालीन स्वर्ग या अनन्तकालीन नरक नहीं है, जीव के किसी जन्म या किन्हीं जन्मों के पुण्य या पापों में ऐसी शक्ति नहीं है कि सदा के लिए उस जीव या भाग्य निश्चित कर दे. वह पुरुषार्थ से सुपथगामी होकर आत्म-उन्नत अवस्था को प्राप्त कर सकता है.

 

स्वर्ग और नर्क

भारतीय संस्कृति में स्वर्ग और नर्क का विधान है । शुभ कार्यों से स्वर्ग और निंदनीय कार्यों, दुराचरण, पाप आदि से नर्क की कठोर यातनाएँ भुगतनी पड़ती हैं- हम यह मानते आये हैं । स्वर्ग को नाना नामों से पुकारा गया है ।
‍इसका एक नाम ब्रह्मलोक भी है कहा गया हैः-


तेषां में वैष ब्रह्मलोको येषां, तपो ब्रह्मचर्य येषु सत्यं प्रतिष्ठितम् ।


जिनमें तप ब्रह्मचर्य है, सत्य प्रतिष्ठित है, उन्हें ब्रह्मलोक मिलता है । जिनमें न तो कुटिलता है और न मिथ्या आचरण है और न कपट है, उन्हीं को विशुद्ध ब्रह्मलोक मिलता है ।
जिस मानव में आशंका, दुःख, चिन्ता, भय, कष्ट, क्षोभ और निरुत्साह है, भोग- विलास और तृष्ण है वही नकर है जो धर्म-पालन, ईश्वर की सत्ता से विमुख है नास्तिक है, वह नरक में जाते हैं । नष्ट हो जाते हैं । काम, क्रोध, लोभ, मोह ये चारों नर्क के द्वार हैं । इनमें से किसी के भी वश में पड़ जाने पर नर्क में पड़ा हुआ समझना चाहिए । अशुभ वासनाओं के भ्रम-जाल में पड़कर मनुष्य दारुण नर्क की यन्त्रणा में फँस सकता है । अन्य प्राणी तो क्षुधा और वासनाओं के जंजाल में बँधे हुए वासना-तृप्ति में ही जीवन नष्ट कर रहे हैं । वे नवीन कर्मों के द्वारा अपने को समुन्नत करने का प्रयत्न नहीं करते, पर मनुष्य कर्मयोनि में रहकर नये संस्कारों का उपार्जन करने वाला प्राणी है । उसके सामने दो मार्ग हैं, एक तो बन्धन या नरक का और दूसरा मोक्ष या स्वर्ग का । संसार के भोगों में फँस हुआ मानव नर्क में ही पड़ा हुआ है । इसके विपरीत, सत्संग, परोपकार, शुभ कार्य, समाज-सेवा, आत्म-सुधार द्वारा मनुष्य मोक्ष की ओर अग्रसर होता है ।

 
जो व्यक्ति शास्त्र-निषिद्ध कर्मों में पाप-प्रवृतियों में लगे रहते हैं, वे बार-बार आसुरी योनि को तथा अधम गति को प्राप्त होते हैं । (गीता १२-२०) विषयासक्ति में पड़े हुए भोगों को लगातार भोगने वाले नर्क में जाते हैं । सांसारिक भोग सुखों की प्राप्ति के साधन रूप सकाम-रूप से भिन्न यथार्थ कल्याण को न जानने वाले व्यक्ति पापों के परिणामस्वरूप हीन योनियों (कीट, पतंगे, शूकर या वृक्ष, पत्थर इत्यादि) में जाते हैं ।
पौराणिक मान्यता यह है कि स्वर्ग और नर्क दो भिन्न-भिन्न लोक है । दण्ड या पुरस्कार प्राप्ति के लिये मनुष्य वहाँ जाता है । वहाँ अपने पुण्य-पाप का पुरस्कार प्राप्त कर जीवन पुनः इस लोक में आता है ।
दूसरी मान्यता यह है कि स्वर्ग और नर्क स्वयं मनुष्य में ही विद्यमान हैं ये उसके मन के दो स्तर हैं मनुष्य के मन में स्वर्ग की स्थिति वह है जिसमें देवत्व के सद्गुणों का पावन प्रकाश होता है । दया, प्रेम, करुणा, सहानुभूति, उदारता की धाराएँ बहती हैं । इस स्थिति में मन स्वतः प्रसन्न रहता है । यही मानसिक मार्ग कल्याणकारी है । अतः इसे स्वर्ग की स्थिति भी कहा जा सकता है । दूसरी मनःस्थिति वह है जिसमें मनुष्य उद्वेग, चिंता, भय, तृष्णा, प्रतिशोध, दम्भ आदि राक्षसी वृत्तियाँ मनुष्य को अन्धकूप में डाल देती हैं । अनुताप और क्लेश की काली और मनहूस मानसिक तस्वीरें चारों ओर दिखाई देती हैं । अन्तर्जगत् यन्त्रणा से व्याकुल रहता है । कुछ भी अच्छा नहीं लगता । शोक, संताप और विलाप की प्रेतों जैसी आकृतियाँ अशान्त रखती हैं । यही नर्क की मनःस्थिति है । इस प्रकार इस जगत् में रहते हुए मानव-जीवन में ही हमें स्वर्ग और नर्क के सुख-दुःख प्राप्त हो जाते हैं । भारतीय संस्कृति के अनुसार सम्भव है कि अपने पवित्र कर्मों द्वारा आपको इसी जगत् में मनःशान्ति, सुख, स्वास्थ्य, संतुलन, इत्यादि प्राप्त हो जाए, या अपने कुकृत्यों द्वारा अशांति, द्वेष, वैर, तृष्णा, लोभ आदि का नर्क मिले ।

क्या वास्तविकता में स्वर्ग या नर्क होते हैं जहाँ मनुष्य को उसके कर्मों के अनुसार पुण्य-पाप का पुरस्कार मिलता है? मनुष्य की आत्मा मृत्यु उपरांत कहाँ जाती है? क्या पुनर्जन्म होते है जिसमें चौरासी लाख योनियों में के बाद मनुष्य जीवन मिलता है? ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिन पर आधुनिक बिज्ञान चुप्पी साधे हुए है।

Sunday, September 28, 2008

श्रद्धांजली-अब के बरस तुझे ...

*****श्रद्धांजली-अब के बरस तुझे ... *****

 

संगीत और सिनेमा जगत में अपनी अद्भुद आवाज की खनक के लिए महेन्द्र कपूर प्रसिद्ध रहे. उनके गाये देशभक्ति के गाने आज भी जोश पैदा कर देते हैं. तन-मन देशभक्ति से ओत-प्रोत हो जाता है. 74 साल के आवाज के इस हँसी जादूगर का कल देहांत हो गया. कुछ वक्त पहले वह गुर्दे की बीमारी से पीड़ित थे और उनका डायलिसिस चल रहा था. 

महेन्द्र कपूर ने बी.आर.चोपड़ा की इन फिल्मों में विशेष रूप से यादगार गाने गाए - हमराज़, ग़ुमराह, धूल का फूल, वक़्त, धुंध . संगीतकार रवि ने इनमें से अधिकाश फ़िल्मों में संगीत दिया. 1968 में उपकार के बहुचर्चित गीत मेरे देश की धरती सोना उगले के लिए सर्वश्रेष्ठ पा‌र्श्व गायक का पुरस्कार मिला था. इस महत्वपूर्ण सम्मान के अलावा उन्हें 1963 में गुमराह के गीत चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएं के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार मिला था. बाद में एक बार फिर 1967 में हमराज के नीले गगन के तले के लिए भी उन्हें फिल्म फेयर पुरस्कार मिला. उनके जीवन का तीसरा फिल्म फेयर पुरस्कार रोटी कपड़ा और मकान के नहीं नहीं और नहीं के लिए 1974 में मिला। बाद में उन्हें पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया. हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें लता मंगेशकर पुरस्कार के लिए चुना था तथा 24 अक्टूबर को उन्हें यह पुरस्कार दिया जाने वाला था.

9 जनवरी, 1934 को जन्में महेंद्र कपूर ने 1953 की फिल्म ‘मदमस्त’ के साहिर लुधियानवी के गीत ‘आप आए तो खयाल-ए-दिल-ए नाशाद mm आया’ से उन्होंने फिल्मी कैरियर की शुरुआत की थी.  महेंद्र कपूर ने क्लासिकल, कव्वाली, भजन, रोमांटिक और सुफियाना, हर तरह के गीत गाए। उन्हें देशभक्तिपूर्ण गीतों के लिए खासतौर पर पहचाना जाता था। मनोज कुमार की लगभग हर फिल्म में उन्होंने आवाज दी।

राष्ट्रीय फिल्म अवार्ड१९६८ उपकार फिल्म के मेरे देश की धरती सोना गीत के लिए सर्वश्रेष्ट गायक के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरूस्कार दिया गया. १९६३ में चलो एक बार फिर से के लिए बेस्ट मेल प्लेबैक सिंगर के लिए फिल्मफेयर अवार्ड दिया गया. १९६७ मे हमराज फिल्म के गीत नीले गगन के तले के लिए बेस्ट मेल प्लेबैक सिंगर का अवार्ड दिया गया. १९७४ नहीं नहीं बस और नहीं गीत के लिए बेस्ट मेलप्ले बैक सिंगर का अवार्ड दिया गया.

महेन्द्र कपूर कुछ प्रसिद्ध गीत

नीले गगन के तले mm1: हमराज १९६७

चलो एक बार : गुमराह १९६३

किसी पत्थर की मुरत से : हमराज १९६७

लाखों हैं यहा दिलवाले : किस्मत १९६८

और नहीं बस और नहीं : रोटी कपड़ा और मकान १९७४

भारत का रहने वाला हूं : पूरब और पश्चिम १९७३

फकीरा चल चला चल : फकीरा १९७५

बदल जाए अगर माली : बहारें फिर भी आएगी १९६६

मेरा प्यार वो है : ये रात फिर ना आएगी १९६५

तेरे प्यार का आसरा : धूल का फुल १९५९

Monday, September 15, 2008

मेरी मर्जी

***** मेरी मर्जी*****

आखिर लोग क्यूँ नहीं सुधरते? कितना कहा जाये, या लिखा जाये या कुछ भी किया जाये लोग आखिर नहीं मानते. यह सब वैसा ही है जैसा देश का कानून और नियम. बनते हैं पर फाइल तक सीमित. जगह जगह इस तरह के इस्तिहार लगे रहते हैं पर सिर्फ लिखने के लिए. आखिर अपनी मर्जी भी कुछ होती है.

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चित्र साभार यहाँ से लिया गया है.

Sunday, August 31, 2008

Saturday, August 23, 2008

बिच्छू घास

***** बिच्छू घास*****

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कल की चित्र पहेली में अलग-अलग तरह के उत्तर मिले. पर सबसे पहले पकड़ा अनामी डीसीपी ने. पर समीर जी, राज जी और अरविन्द जी सही उत्तर देने में अंतत: सफल रहे. समीर जी तो खुशी में जिन्दाबाद- जिन्दाबाद के नारे भी लगा बैठे. :)

चित्र पहेली में जो पौधा दिखाया गया था उसे भारत में सामान्यतया  बिच्छू घास या बिच्छू बूटी के नाम से जाना जाता है और यह बहुतायत से पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाता है. इसे Stinging Nettle नाम से भी जाना जाता है. इसका बैज्ञानिक नाम Urtica dioica है यह यूरोप, एशिया, उत्तरी अमेरीका और उत्तरी अफ्रीका में पाया जाता है.

बिच्छू घास पूरी तरह कांटों से भरा होता है जिनमें acetylcholine, histamine, 5-HT और formic acid का मिश्रण होता है जिससे इसको छूने मात्र से असहनीय जलन और खुजली महसूस होती है और दाने निकल आते हैं. इसलिए इसे खुजली वाला पौधा के नाम से भी पहचाना जाता है. 

इसका प्रयोग दवाई के रूप में किया जाता है. यह घुटनों और जोड़ों के दर्द में असर अचूक माना जाता है. स्थानीय लोग इसे सीधे दर्द वाले स्थान पर लगाते हैं. यह अर्थेराइटिस (arthritis) में इसका प्रयोग किया जाता है. इसे हर्बल दवाईयों के निर्माण में प्रयुक्त किया जाता है. 

अमेरिका में तो इसकी खेती भी की जाती है. वहाँ होने वाली बिच्छू घास कुछ  लाल की होती है और पत्ते गोलाई लिये होते हैं. जिसे उत्तराखण्ड में अल्द के नाम से जाना जाता है.  बिच्छू घास के कोमल पत्तों का सूप और सब्जी भी बनाई जाती है. जिसे हर्बल डिश कहते हैं. यह गरम तासीर की होती है और इसका स्वाद कुछ-कुछ पालक की तरह होता है. इसमें बिटामिन A,B,D , आइरन, कैल्सियम और मैगनीज़ प्रचुर मात्रा में होता है.  

उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ शहर  में होने वाले बग्वाल मेले के प्रसिद्ध पत्थर युद्ध में घायल लोगों का इलाज किसी ह्स्पताल में न कराकर मन्दिर के पीछे होने वाले बिच्छू घास से ही की जाती है. उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा शहर में एक एनजीओ ने पास के गांवों से लगभग 700 महिलाओं को काम पर लगा रखा है जो ऊन और बिच्छू घास से मेरीनो सब्जी डाई का उपयोग करते हुए खूबसूरत शॉल बनाती हैं. जिसे पंचुचूली शॉल के नाम से जाना जाता है.

भारत में यह जंगली पौधे के रूप में अपने आप पैदा हो जाता है. इसका प्रयोग स्थानीय लोग पशुओं के चारे के रूप में साधारणतया करते हैं. इसका प्रयोग दण्ड देने के लिए भी किया जाता है. बिच्छू घास को पाने में भिगाकर लगाने से दण्ड से अपराधी को दादी-नानी याद आने लगती है:)  उत्तराखण्ड के कई इलाकों में शराबियों को सुधारने के के लिए बिच्छू धास का सहारा भी लिया.  

शनिदेव के प्रकोप से बचने और पटाने के लिए भी  बिच्छू धास  का प्रयोग ज्योतिषी बताते हैं. नीलम,नीलिमा,नीलमणि,जामुनिया,नीला कटेला, आदि शनि के रत्न और उपरत्न हैं. अच्छा रत्न शनिवार को पुष्य नक्षत्र में धारण करना चाहिये. इन रत्नों मे किसी भी रत्न को धारण करते ही चालीस प्रतिशत तक फ़ायदा मिल जाता है. जो इन रत्नों का जुगाड़ ना कर सके वह बिच्छू बूटी की जड़ का प्रयोग कर सकता है.

बिच्छू बूटी की जड़ या शमी जिसे छोंकरा भी कहते है की जड शनिवार को पुष्य नक्षत्र में काले धागे में पुरुष और स्त्री दोनो ही दाहिने हाथ की भुजा में बान्धने से शनि के कुप्रभावों में कमी आना शुरु हो जाता है.

Tuesday, August 5, 2008

ब्लॉगिंग करने का नया अन्दाज़

*****ब्लॉगिंग करने का नया अन्दाज़*****

अगर ब्लॉगिंग करते-करते पोस्टिंग पेज़ से बोर हो गये हैं या ब्लॉगिंग में विण्डो लाइव राइटर जैसा अन्दाज़ चाहते हैं तो इसका मज़ा लूटिये ब्ळॉगर ब्लॉगर में ही. अभी तक जिस पोस्टिंग पेज़ का प्रयोग प्रयोग मैं कर रहा था वो कुछ इस तरह था. (चित्र)

 

 

 

 

 

 

 

 

 

पर ब्लॉगर ने पेश किया है ड्राफ़्ट में ब्लॉगर. जिसका पोस्टिंग पेज़ नई सुविधाओं के साथ कुछ इस तरह का नज़र आता है. (चित्र)

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इसमें चित्र कम समय में उसी विण्डो में अपलोड हो जाता है.

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यह कट, कॉपी और पेस्ट करने वालों की सहायता नहीं करता है. कई ऐसे ब्लॉगर्स के लिए  यह सुविधाजनक नहीं भी हो सकता. इसकी सेटिंग्स में जाकर ब्लॉग उपकरण की सहायता से ब्लॉग का आयात-निर्यात भी कर सकते हैं. और भी बहुत कुछ हैं इसमें.

तो शुरू हो जाईये और मज़ा लूटिये ड्राफ़्ट में ब्लॉगर का ...

Wednesday, July 23, 2008

Five Hundred Million Dollars का छुट्टा चाहिए..

******Five Hundred Million Dollars का छुट्टा चाहिए *****

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अभी कुछ दिनों पहले की बात है जब हमरे पड़ोसी मनसुख लाल जिम्वाब्वे गये अपने लड़के के पास. भरा पूरा परिवार. लड़का और बहू दोनों काम करने वाले. मनसुख लाल बड़े खुश हुए कि उनके लड़के ने उनको बुलाया तो सही. सुबह का नाश्ता करने के बाद वो थोड़ा टहलने जाते. बस घर के पास ही, ज्यादा दूर नहीं. उन्हें डर रहता कि परदेश में कहीं खो गये तो क्या होगा. बस जी उनके दिन मजे से कट रहे थे.   

एक दिन बहू, बेटे दोनों को काम पर जल्दी जाना था. बहू नाश्ता करा गई और बेटे ने उन्हें क्रेडिट कार्ड यह कह कर थमा दिया कि पास में ही रेस्टोरेंट है आज वहाँ खा लेना. मनसुख लाल जी ने सोचा ठीक है आज थोड़ा शहर भी देख लिया जायेगा. मनसुख लाल को वहाँ के बारे में और महंगाई के बारे में ज्यादा पता नहीं था. वैसे भी वो इन सब के बारे में अपना दिमाग नहीं लगाते थे. उनका अधिकांश समय धार्मिक पुस्तकों में या आस्था में बाबाओं के प्रवचनों में निकल जाता था.

मनसुख लाल जी लंच टाईम से कुछ देर पहले ही निकल गये. अभी कुछ दूर चले ही थे कि उन्हें रेस्टोरेंट नजर आया. अजी रेस्टोरेंट क्या गाँव के छगन लाल के बेटे रोशन का ढाबा कह लो.  मनसुख लाल अंदर हो चले गये. सामने सरदार जी बैठे नजर आये.

सरदार जी देखते ही पूछे-" आर यू इण्डियन इंडियन?"                   मनसुख लाल- " यस"                                                     सरदार जी- " पापा जी कौण से शहर से?"                               मनसुख लाल-"हरियाणा से. और आप?"                              सरदार जी-" भटिंडा से..."                      

बातों ही बातों में पता चला कि सरदार जी पिछ्ले 15 सालों से वहाँ रहते हैं . उन्हें अपनी मिट्टी और वतन से बहुत प्यार है. मनसुख लाल अपने देश के आदमी को देखकर बहुत खुश हुए. और सरदार से प्रभावित भी हुए. सरदार जी ने यह भी बताया कि वह हमवतन को 50% डिस्काउन्ट में खाना खिलाते हैं. 

मनसुख लाल बड़े खुश हुए. उन्होंने अच्छा और ज्यादा खाना ओर्डर किया. मक्के की रोटी, सरसों का साग, लस्सी, खीर .....              मनसुख लाल को अपने गाँव की याद आ गई. आज बड़े दिनों बाद डट कर खाया था. मनसुख लाल बिल पेमेंट करने सरदार जी के पास जा रहे थे. तभी एक आदमी आया.                                             बोला-" सरदार जी $500 मिलियन के छुट्टे दे दो"                    सरदार जी ने 100-100 मिलियन के पाँच डॉलर निकाल कर दे दिये.  अब मनसुख लाल के चौकने की बारी थी. उसने सोचा 500 मिलियन डॉलर बहुत बड़ी चीज होती है और सरदार जी ऐसे ही रखे हैं अपनी गुल्ले में. मनसुख लाल के हाथों में $80 मिलियन का बिल था. मनसुख लाल ने सरदार जी से पूछा कि बिल तो सही दिया हैं उनको.

सरदार जी-"बिल सही है पापा जी. आपको तो हमने 50% में दिया है. नहीं तो यही बिल दुगना होता"                                        मनसुख लाल-"पर यह बहुत ज्यादा नहीं है?? गाँव में तो छगन लाल का छोरा यही खाना खाणा 50 रूपैये में खिला देवे है"              सरदार जी-" पापा जी ये जिमबाब्वे है. यहाँ मुद्रास्फीति की दर 22 लाख प्रतिशत है. हम भी क्या करें. यहाँ का $50 मिलियन अमेरिका के $2 से भी कम है. बस नाम का मिलियन है. काम वही 50 रूपैये वाला है. "  सरदार जी आगे बोले-" पहली बार 2.5 लाख जिम्बाब्वे डॉलर का नोट जारी किया गया था. इसके बाद जनवरी में 10 लाख और एक करोड़ डॉलर का नोट जारी किया गया. मई माह में 2.5 करोड़, 5 करोड़ से 50 बिलियन तक का नोट जारी किया गया. पापा जी ये देखो $500 मिलियन का नोट, इसमें अभी चार लोगों ने खाणा खाया था."

मनसुख लाल के लिए ये सब किसी आश्चर्य से कम नहीं था. उन्होंने क्रेडिट कार्ड निकाला पेमेंट किया और चल दिये. सोचने लगे अपना गाँव अपना देश अपना ही होता है. यहाँ तो हाथी के दाँत दिखाने के और खाने के और ही होते है."

डिस्क्लेमर:
यहाँ पर आये सभी पात्र एवं घटनाएं लेखक कामोद की कल्पनाशीलता का नतीजा है. इसका वास्तविकता से सम्बन्ध होना मात्र संयोग ही माना जायेगा.

Sunday, July 20, 2008

ब्लोग चोर ने बजाई पुंगी

अभी-अभी दीपक बापू को पढ़ा जहाँ वे अपने ब्लोग चोरी होने की व्यथा को नहीं छुपा पाये और ब्लोग चोरी को रोकने की अपील करने  लगे. टिप्पणी पर जाकर पता लगा कि सबको हँसाने वाले राजीव जी खुद ब्लोग चोरी की समस्या से दो-चार हो रहे हैं.

यह ब्लोग चोर बहुत मज़ा हुआ खिलाड़ी है. इस ब्लोग में ब्लोग लेखक, का नाम नदारत मिलता है. हाँ पंगेबाज जी के पंगे से बचने के लिए पुंगी का सहारा लिया है ब्लोग चोर ने. तथाकथित ब्लोग चोर  पुंगीबाज नाम से सबकी पुंगी बज़ा रहा है.

ब्लोग चोरी की बातें पहले भी सुनने को मिली थी. पर इस नये चोर का अवतरण इसी साल जनवरी में हुआ है. और जिसमें अभी तक  दो ब्लोगचोरी की दावेदारी नज़र आई है.

ब्लोग एक सशक्त माध्यम है अपनी बात को दूसरों तक पहुँचाने का.  इसी क्षेत्र में हिन्दी ब्लोगिंग कुछ ही सालों में लोकप्रिय हुई है. जिसमें कुछ ब्लोगवीर अपनी प्रभावशाली लेखनी से हिन्दी ब्लोग जगत में चमक रहे हैं वहीं कुछ विद्वान ब्लोगर सस्ती लोकप्रियता और बैठे बिठाये नाम पाने के लिए ब्लोग चोरी जैसी धटना को अंजाम दे रहे हैं

ब्लोगचोरी आखिर क्यूँ होती है?? क्या ब्लोग में कॉपीराईट नहीं होने से? वैसे भी यहाँ कॉपीराईट का मतलब राईट ऑफ कॉपी होता है. तभी तो अधिकतर ब्लोगर कट, कॉपी और पेस्ट का आसान, सस्ता और टिकाऊ साधन का प्रयोग आसानी से कर जाते हैं. जिसे पता नहीं होता है वो इन्ही ब्लोगचोरों को मूल लेखक मानता है. अधिकतर ब्लोगर छद्म नाम से लिखते हैं जिससे असल पहचान कर पाना आसान नहीं होता है.

वैसे भी पकड़ने कहाँ जाओगे? पकड़ भी लिया तो यही कहेगा कि तुम भी कौन से दूध के धुले हो!! चोरी तो तुमने भी की है. चाहे वो फोटो की चोरी हो या समाचार की या कोई दूसरी.

जहाँ तक मेरा मानना है ऐसे ब्लोग चोरों को तड़ीपार कर देना चाहिए. मतलब ब्लोग एग्रीगेटरों के हस्तक्षेप से इनका प्रवेश (ब्लॉक) बंद कर देना चाहिए. शायद यही अच्छा उपाय है इनको दूर करने का.

आप क्या विचार रखते हैं इस बारे में.

Wednesday, July 16, 2008

बदले- बदले से धड़ाधड़ महाराज़

***** बदले- बदले से धड़ाधड़ महाराज़*****  

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 धड़ाधड़ महाराज़ आजकल कुछ दिनों से नये रंगरूप में आकर्षक नज़र आ रहे हैं.  धुरन्दर चिट्ठाकारों को अब नई जगह पर शिफ्ट कर दिया गया है. साथ ही नये चिट्ठाकारों को भी सम्मान दिया गया है. चिट्ठा 

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सम्बन्धित जानकारी अलग से अन्य विशेषताओं में समाहित कर दी हैं जहाँ वर्ग वदलें, पुस्तक चिन्ह और डाक सूचक में जाने के लिए पंजिकरण की अनिवार्यता है. जबकि हवाले, सक्रियता क्रम और पिछले लेख पर सीधे वार किया जा सकता है.

धड़ाधड़ टिप्प्णियों, धड़ाधड़ पढ़ाकू और धड़ाधड़ वाहवाही लूटने वाले चिट्ठों के लिए एक अलग कॉलम बनाया गया है. वहीं चिट्ठों को विभिन्न चिप्पियों के माध्यम से अलग- अलग करने का प्रयास सफल नज़र आता है.

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चिट्ठों की सक्रियता को घंटों, दिनों और महिनों के माध्यम से दर्शाया गया है. जिससे हिन्दी ब्लोग लेखन में हो रही प्रगति को आसानी से समझा जा सकता है. धड़ाधड़ महाराज़ चिट्ठाजगत में प्रतिक्रिया स्वरूप सुझाव एवं शिकायतें भेजने के लिए नया ई-पता जारी किया गया है.-
nayaroop [ एट ] chitthajagat < डॉट > in

नये रूप में धड़ाधड़ महाराज़ चिट्ठाजगत आकर्षक नज़र आता है. बस ऐसा समझ लो नई बोतल पुरानी शराब है. और भी बहुत कुछ है इस नये रूप में. अंत में 100000+ चिट्ठा प्रवष्टियों के लिए सभी पाठकों, चिट्ठाकारों और एग्रीगेटरों को बधाईयाँ एवं शुभकामनाएं.

Tuesday, July 15, 2008

ये वादियां ये हवाएं बुला रही हैं.....

*****ये वादियां ये हवाएं बुला रही हैं हमें *****








फूलों की धाटी (Valley of Flowers National Park) चमोली गढ़वाल, उत्तराखण्ड में 87.5 वर्ग किलोमीटर में फूलों से लदी प्रकृति की अनुपम भेंट है। यह स्थान बद्रीनाथ से लगभग 42 कि. मी. की दूरी पर स्थित है। पुष्पा नदी की धारा के समीप एवं रतनवन हिमशिखर क्षेत्र में स्थित इस विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी को सर्वप्रथम प्रसिद्ध पर्वतारोही फ्रेंक एस. स्मिथ ने सन् 1931 में कामेट शिखर के पर्वतारोहण के दौरान देखा एवं विस्तृत पुष्प उद्यान से उन्होंने अनगिनत फूलों का संकलन किया और फूलों की धाटी पर एक पुस्तक लिखी जो 1938 में "The Valley of Flowers” नाम से प्रकाशित हुई।
अपनी पुस्तक में फ्रेंक एस. स्मिथ ने लिखा है-
"I hope generously, my ignorance must judge for
myself whether the Bhyundar Valley deserves its title the Valley of Flowers.
Others will visit it, analyze it and probe it but, whatever their opinions, to
me it will remain the 'Valley of Flowers' a valley of peace and perfect beauty
where the human spirit may find repose".
यहा के एक फूल प्रिमुला के बारे में स्मिथ ने लिखा है-
"In all my mountain wanderings I had not seen a more
beautiful flower than this Primula. The fine rain drops clung to its soft petals
like galaxies of seed pearls and frosted its leaves with
silver”.


फूलों की घाटी गोविन्द घाट से 19 कि. मी. पैदल दूरी पर है। और बदरीनाथ से 25 कि.मी.की दूरी पर है। इस घाटी के पूर्व में गौरी पर्वत और रतनबन, पश्चिम में कुंतखाल, दक्षिण में सप्तश्रिंग और उत्तर में नीलगिरी पर्वत है। भ्युन्दर खाल के नजदीक तिप्रा ग्लेशियर से निकलने वाली नदी पुष्पावती नदी फूलों की घाटी से होते हुए घनगारिया के पास लक्ष्मण गंगा में मिलती है जो यहाँ से 12 कि.मी. दूर गोविन्दघाट में अलकनन्दा नदी में मिल जाती है।
घाटी में फूलों के खिलने का समय जुलाई-अगस्त महीने में है। यहाँ 300 से भी ज्यादा किस्म के फूल पाये जाते हैं। चमोली उत्तराचंल के समस्त शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। यह स्थान ऋषिकेश से लगभग 204 कि. मी. की दूरी पर है। यहाँ पर रात्रि विश्राम की सुविधा उपलब्ध नहीं है। पर घनगरिया, भ्युन्दर, पुलना और गोविन्दघाट में रहने के लिए रहने की उचित व्यवस्था है।

सड़क मार्ग से यहाँ दो तरीके से पहुँचा जा सकता है-
1.हल्द्वानी-रानीखेत-कर्णप्रयाग-जोशिमठ-गोविंदघाट (लगभग 332 कि.मी.)
2. ऋषिकेश-श्रीनगर- कर्णप्रयाग-जोशिमठ-गोविंदघाट (लगभग 270 कि.मी. हरिद्वार-बदरीनाथ राजमार्ग पर)
नजदीकी एयरपोर्ट जौली ग्रांट , देहरादून 319 कि.मी. पर है।
नज़दीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश 302 कि.मी. पर है।