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Thursday, March 13, 2014


होली

Friday, September 11, 2009

अम टो मिष्टर हो गया अब तो यूरप जाना मांगटा है

*****अम टो मिष्टर हो गया अब तो यूरप जाना मांगटा है*****

पहाड़ों में अंग्रेजों के आने के साथ ही कुछ सामाजिक परिवर्तन होने लगे। खासकर उन लोगों में जो अंग्रेजों के धरों में नौकरी करते थे। हिमालय क्षेत्र के कुछ परिवारों ईसाई धर्म स्वीकारा और चर्च बने। पियानो, हार्मोनियम, फीडल, बिगुल या मशकबीन (बैगपाईपर) का हिमालय पर आगमन हुआ।

नैनीताल से प्रकाशित पहाड़(1999) के अनुसार लोगों के रहन सहन, खान पान, पहनावे और मकानों में भी इसका असर दिखने लगा। लोगों में 'साहब' बनने की चाह के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा का भ्रष्ट उच्चारण होने लगा। 18वीं सदी के प्रसिद्ध नाटककार भवानीदत्त थपल्याल के नाटक "प्रह्लाद" का अंश है जिसमें तत्कालीन समय में अंग्रेजों के पहाड़ी क्षेत्र में आने के बाद के सामाजिक परिवर्तनों को बताने की कोशिश की गई है।

अम टो मिष्टर हो गया अब तो यूरप जाना मांगटा है

अम टो मिष्टर हो गया अब तो यूरप जाना मांगटा है।
डाल भाट साग रोटि ये तो खावै काला लोग।
अंडा मुर्गी और शराब मिष्टर खाना मांगता है॥

माटा पिटा वा चाचा चाची ये टो पुकारै काला लोग।
पा पा मामा अंकिल आंट मिष्टर केना मांटता है॥

भाई बहन क्या बेटा बेटी एसा बोले काला लोग़।
ब्रादर सिष्टर सन्नैड डौटर मिष्टर बोलना मांटता है॥

अंगा चोगा ढीला ढाला ये टो पैने काला लोग।
कोट फाटा हो पीछे से मिष्टर पेन्ना मांटता है॥

टोपी ढोटी कुर्टा गुलबन्ड ये टो पैने काला लोग।
हैट पैंट शर्ट कौलर मिष्टर पेन्ना मांटता है॥

खाटे पीटे पूजा कर्टे चौका दे के काला लोग।
ई टिं ड्रिं किं होटल में मिष्टर टेबुल मांटता है॥

पाखाने में चूटड़ ढोवै जिमी पै हग्ने वाला काला लोग।
हग्गा मूटा टांग उठा कर मिष्टर पोंछना मांटता है॥

ढ़ोलक टबला टुरी सिटार ये टो बजा वै काला लोग।
हार्मोनियम बिगुल फीडल हम्म बजाना मांगटा है॥

Saturday, August 23, 2008

बिच्छू घास

***** बिच्छू घास*****

bbb

कल की चित्र पहेली में अलग-अलग तरह के उत्तर मिले. पर सबसे पहले पकड़ा अनामी डीसीपी ने. पर समीर जी, राज जी और अरविन्द जी सही उत्तर देने में अंतत: सफल रहे. समीर जी तो खुशी में जिन्दाबाद- जिन्दाबाद के नारे भी लगा बैठे. :)

चित्र पहेली में जो पौधा दिखाया गया था उसे भारत में सामान्यतया  बिच्छू घास या बिच्छू बूटी के नाम से जाना जाता है और यह बहुतायत से पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाता है. इसे Stinging Nettle नाम से भी जाना जाता है. इसका बैज्ञानिक नाम Urtica dioica है यह यूरोप, एशिया, उत्तरी अमेरीका और उत्तरी अफ्रीका में पाया जाता है.

बिच्छू घास पूरी तरह कांटों से भरा होता है जिनमें acetylcholine, histamine, 5-HT और formic acid का मिश्रण होता है जिससे इसको छूने मात्र से असहनीय जलन और खुजली महसूस होती है और दाने निकल आते हैं. इसलिए इसे खुजली वाला पौधा के नाम से भी पहचाना जाता है. 

इसका प्रयोग दवाई के रूप में किया जाता है. यह घुटनों और जोड़ों के दर्द में असर अचूक माना जाता है. स्थानीय लोग इसे सीधे दर्द वाले स्थान पर लगाते हैं. यह अर्थेराइटिस (arthritis) में इसका प्रयोग किया जाता है. इसे हर्बल दवाईयों के निर्माण में प्रयुक्त किया जाता है. 

अमेरिका में तो इसकी खेती भी की जाती है. वहाँ होने वाली बिच्छू घास कुछ  लाल की होती है और पत्ते गोलाई लिये होते हैं. जिसे उत्तराखण्ड में अल्द के नाम से जाना जाता है.  बिच्छू घास के कोमल पत्तों का सूप और सब्जी भी बनाई जाती है. जिसे हर्बल डिश कहते हैं. यह गरम तासीर की होती है और इसका स्वाद कुछ-कुछ पालक की तरह होता है. इसमें बिटामिन A,B,D , आइरन, कैल्सियम और मैगनीज़ प्रचुर मात्रा में होता है.  

उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ शहर  में होने वाले बग्वाल मेले के प्रसिद्ध पत्थर युद्ध में घायल लोगों का इलाज किसी ह्स्पताल में न कराकर मन्दिर के पीछे होने वाले बिच्छू घास से ही की जाती है. उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा शहर में एक एनजीओ ने पास के गांवों से लगभग 700 महिलाओं को काम पर लगा रखा है जो ऊन और बिच्छू घास से मेरीनो सब्जी डाई का उपयोग करते हुए खूबसूरत शॉल बनाती हैं. जिसे पंचुचूली शॉल के नाम से जाना जाता है.

भारत में यह जंगली पौधे के रूप में अपने आप पैदा हो जाता है. इसका प्रयोग स्थानीय लोग पशुओं के चारे के रूप में साधारणतया करते हैं. इसका प्रयोग दण्ड देने के लिए भी किया जाता है. बिच्छू घास को पाने में भिगाकर लगाने से दण्ड से अपराधी को दादी-नानी याद आने लगती है:)  उत्तराखण्ड के कई इलाकों में शराबियों को सुधारने के के लिए बिच्छू धास का सहारा भी लिया.  

शनिदेव के प्रकोप से बचने और पटाने के लिए भी  बिच्छू धास  का प्रयोग ज्योतिषी बताते हैं. नीलम,नीलिमा,नीलमणि,जामुनिया,नीला कटेला, आदि शनि के रत्न और उपरत्न हैं. अच्छा रत्न शनिवार को पुष्य नक्षत्र में धारण करना चाहिये. इन रत्नों मे किसी भी रत्न को धारण करते ही चालीस प्रतिशत तक फ़ायदा मिल जाता है. जो इन रत्नों का जुगाड़ ना कर सके वह बिच्छू बूटी की जड़ का प्रयोग कर सकता है.

बिच्छू बूटी की जड़ या शमी जिसे छोंकरा भी कहते है की जड शनिवार को पुष्य नक्षत्र में काले धागे में पुरुष और स्त्री दोनो ही दाहिने हाथ की भुजा में बान्धने से शनि के कुप्रभावों में कमी आना शुरु हो जाता है.

Tuesday, July 15, 2008

ये वादियां ये हवाएं बुला रही हैं.....

*****ये वादियां ये हवाएं बुला रही हैं हमें *****








फूलों की धाटी (Valley of Flowers National Park) चमोली गढ़वाल, उत्तराखण्ड में 87.5 वर्ग किलोमीटर में फूलों से लदी प्रकृति की अनुपम भेंट है। यह स्थान बद्रीनाथ से लगभग 42 कि. मी. की दूरी पर स्थित है। पुष्पा नदी की धारा के समीप एवं रतनवन हिमशिखर क्षेत्र में स्थित इस विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी को सर्वप्रथम प्रसिद्ध पर्वतारोही फ्रेंक एस. स्मिथ ने सन् 1931 में कामेट शिखर के पर्वतारोहण के दौरान देखा एवं विस्तृत पुष्प उद्यान से उन्होंने अनगिनत फूलों का संकलन किया और फूलों की धाटी पर एक पुस्तक लिखी जो 1938 में "The Valley of Flowers” नाम से प्रकाशित हुई।
अपनी पुस्तक में फ्रेंक एस. स्मिथ ने लिखा है-
"I hope generously, my ignorance must judge for
myself whether the Bhyundar Valley deserves its title the Valley of Flowers.
Others will visit it, analyze it and probe it but, whatever their opinions, to
me it will remain the 'Valley of Flowers' a valley of peace and perfect beauty
where the human spirit may find repose".
यहा के एक फूल प्रिमुला के बारे में स्मिथ ने लिखा है-
"In all my mountain wanderings I had not seen a more
beautiful flower than this Primula. The fine rain drops clung to its soft petals
like galaxies of seed pearls and frosted its leaves with
silver”.


फूलों की घाटी गोविन्द घाट से 19 कि. मी. पैदल दूरी पर है। और बदरीनाथ से 25 कि.मी.की दूरी पर है। इस घाटी के पूर्व में गौरी पर्वत और रतनबन, पश्चिम में कुंतखाल, दक्षिण में सप्तश्रिंग और उत्तर में नीलगिरी पर्वत है। भ्युन्दर खाल के नजदीक तिप्रा ग्लेशियर से निकलने वाली नदी पुष्पावती नदी फूलों की घाटी से होते हुए घनगारिया के पास लक्ष्मण गंगा में मिलती है जो यहाँ से 12 कि.मी. दूर गोविन्दघाट में अलकनन्दा नदी में मिल जाती है।
घाटी में फूलों के खिलने का समय जुलाई-अगस्त महीने में है। यहाँ 300 से भी ज्यादा किस्म के फूल पाये जाते हैं। चमोली उत्तराचंल के समस्त शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। यह स्थान ऋषिकेश से लगभग 204 कि. मी. की दूरी पर है। यहाँ पर रात्रि विश्राम की सुविधा उपलब्ध नहीं है। पर घनगरिया, भ्युन्दर, पुलना और गोविन्दघाट में रहने के लिए रहने की उचित व्यवस्था है।

सड़क मार्ग से यहाँ दो तरीके से पहुँचा जा सकता है-
1.हल्द्वानी-रानीखेत-कर्णप्रयाग-जोशिमठ-गोविंदघाट (लगभग 332 कि.मी.)
2. ऋषिकेश-श्रीनगर- कर्णप्रयाग-जोशिमठ-गोविंदघाट (लगभग 270 कि.मी. हरिद्वार-बदरीनाथ राजमार्ग पर)
नजदीकी एयरपोर्ट जौली ग्रांट , देहरादून 319 कि.मी. पर है।
नज़दीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश 302 कि.मी. पर है।