नीलिमा जी (मुझे कुछ कहना है) और नीलिमा जी (वाद सम्वाद) का चिट्ठा पढ़ा जहाँ दोनों चिट्ठाकार चिट्ठाजगत में अपनी पहचान तलाश रहे हैं. एक ऐसी तलाश जिसमें इनका कोई दोष नहीं है. ये कमाल तो हमारे नारद जी का है जो अपनी पुरानी आदतों ( इधर की बात उधर करने की) को नहीं छोड़ पाये हैं. नारद जी की गलती उसी तरह है जिस तरह बचपन में मास्साब द्वारा एक ही कक्षा में एक ही नाम के दो छात्र होने पर अक्सर बार बुलाया किसी को जाता था और चला कोई जाता था।
यहाँ नारद जी ने नीलिमा और नीलिमा सुखिजा अरोड़ा की तस्वीरों को ही आपस में बदल दिया. इसकी टोपी उसके सर पहना डाली. नारद जी तो अपना काम कर गये पर अब ये दोनों चिट्ठाकार (नीलिमा और नीलिमा सुखिजा अरोड़ा) चिट्ठाजगत में अपनी पहचान की तलाश कर रहीं हैं. तलाश अभी भी जारी है
5 comments:
तलाश अभी जारी है???
-अरे, जब मुखिया ऐसा कहेंगे तब तो बड़ा चिन्ता का विषय है. :)
हमें लगा कि आप तक खबर पहुँच गई मतलब हल निकला ही समझो.
ब्लोगिंग में सभी अपनी पहचान ही तलाश करते हैं. इन्हे भी करने दें.
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समीरजी शायद कन्फ्यूज हैं (या फिर मैं) या कहें कि एक और पहचान का घपला-
बंधु स्पष्ट करें कि आप- मिर्ची सेठ- बोले तो पंकज नरूला यानि नारद के मालिक ही हैं (मुझे लगता है कि नहीं)
समीरजी ने टिप्पणी शायद यही समझकर की है।
बन्धुवर मिसिजिवी ,
मैं यहाँ स्पस्ट कर देना चाहता हूँ कि मैं (मिर्ची सेठ) और पंकज जी का चिट्ठा मिर्ची सेठ अलग-अलग हैं. मैं मिर्ची सेठ( ब्लोग: कुछ खट्टी कुछ मीठी) नाम से चिठ्ठा लिखता हूँ जबकि पंकज जी मिर्ची सेठ शीर्षक से. अब शायद आपका भ्रम दूर हो जाये.
बन्धुवर,
नाम में कंफ्युजन ना हो इसलिए यहाँ नाम में परिवर्तन कर दिया गया है.मुझे डर है कहीं भविष्य में मुझे भी "पहचान ( IDENTITY)की तलाश" ना करनी पड़े.
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