बात कल 2 ओक्टोबर की है जब मैं अपने मित्र शर्मा जी के साथ शाम को सैर करने निकला था. हम लोग पार्क में बैठ गाँधी जी के उसूलों(गाँधीवाद) और उस पर फिल्मी दुनियाँ के पड़ते प्रभाव (गाँधीगिरी) पर चर्चा कर रहे थे. शर्मा जी बोले “यार मानो या ना मानो पर मुन्ना भाई ने गाँधीवाद को नया जन्म दिया है....(अपने शर्मा जी संजू बाबा के बहुत बडे प्रसंसक हैं )” . हमने उनकी तरफ पान बडाया. शर्मा जी गिलोटी मुँह में लेकर अपनी बात जारी रखे “...गाँधी जी के उसूलों को आज की युवा पीढ़ी भूलने लगी थी. पर मुन्ना ने इसे नया जन्म दिया है.” हम बात को आगे बड़ाते हुए बोले “ पर शर्मा जी ये बातें फिल्मी दुनियां तक ही अछ्छी लगती हैं असल जिन्दगी में नहीं....” हमारी बात काटते हुए शर्मा जी ने कई घटनाएं सुना दी जो गाँधीगिरी से प्रभावित थी (गाँधीवाद से नहीं). अब तो कुछ-कुछ मैं भी इस बात की सहमती दे रहा था.
अभी हमारी ये चर्चा जारी ही ठी कि पार्क के बाहर बचाओ-बचाओ की आवज सुनाई दी. हम तेजी से वहाँ पहुंचे जहाँ अब भीड़ ने अपना स्थान ले लिया था. देखा कुछ लोग एक व्यक्ति को लात-घूसों से मार रहे थे. भीड तमाशबीन बनी थी. मैंने और शर्मा जी ने उस व्यक्ति को बचाने का प्रयास किया तो कुछ लोग हमसे ही भिड़ने लगे. एक बोला “ चाचा जाओ. इन लफडों में ना ही पड़ो तो अछ्छा है. साला चार महिने से बैंक की किस्त नहीं दे रहा था. वार्निंग भी दी थी साले को तब भी किस्त नहीं दी. हम भी क्या करें बैंक का इतना प्रेशर रहता है ना....” अब समझ में आया कि ये लोग रिकवरी एजेंट हैं और मार खाने वाला बेचारा कर्जदार, जो मार खाते-खाते अर्ध-मूर्छित हो चुका था . उसने अपने साथी से कहा “ अरे कल्लू छोड़ दे इसे आज के लिए इतना ही बहुत है... अगर मर गया तो पैसा कौन देगा....” सभी एक वैन में चले गये.
इसी बीच पी. सी. आर. (पुलिसिया गाड़ी) आ गयी (फिल्मों की तरह वारदात होने के बाद) . भीड़ यथावत वहीं खड़ी थी. पुलिस लोगों से बयान देने के लिए कहा तो लोग यही कह रहे थे कि वो तो अभी-अभी आये उन्होंने कुछ देखा नहीं. एक सज्जन बोले ‘ मैने सुना कि यहां किसी को पीटा जा रहा है इसलिए चला आया.’ और जब हमारे शर्मा जी से पूछा गया तो वह पान मुँह में रखकर कुछ इस तरह बोले जैसे कि वो गूंगे हो. हमने पुलिस के सामने आँखों देखा हाल प्रसारित कर दिया.
यह सब देखकर लगा कि मुन्नाभाई ने गाँधीगिरी तो सिखा दी पर गाँधी जी के तीन बन्दर आज भी ना बुरा देखते हैं, ना सुनते हैं और ना ही कुछ बोलते है.
क्या ये बन्दर कभी बदलेंगे??
अभी हमारी ये चर्चा जारी ही ठी कि पार्क के बाहर बचाओ-बचाओ की आवज सुनाई दी. हम तेजी से वहाँ पहुंचे जहाँ अब भीड़ ने अपना स्थान ले लिया था. देखा कुछ लोग एक व्यक्ति को लात-घूसों से मार रहे थे. भीड तमाशबीन बनी थी. मैंने और शर्मा जी ने उस व्यक्ति को बचाने का प्रयास किया तो कुछ लोग हमसे ही भिड़ने लगे. एक बोला “ चाचा जाओ. इन लफडों में ना ही पड़ो तो अछ्छा है. साला चार महिने से बैंक की किस्त नहीं दे रहा था. वार्निंग भी दी थी साले को तब भी किस्त नहीं दी. हम भी क्या करें बैंक का इतना प्रेशर रहता है ना....” अब समझ में आया कि ये लोग रिकवरी एजेंट हैं और मार खाने वाला बेचारा कर्जदार, जो मार खाते-खाते अर्ध-मूर्छित हो चुका था . उसने अपने साथी से कहा “ अरे कल्लू छोड़ दे इसे आज के लिए इतना ही बहुत है... अगर मर गया तो पैसा कौन देगा....” सभी एक वैन में चले गये.
इसी बीच पी. सी. आर. (पुलिसिया गाड़ी) आ गयी (फिल्मों की तरह वारदात होने के बाद) . भीड़ यथावत वहीं खड़ी थी. पुलिस लोगों से बयान देने के लिए कहा तो लोग यही कह रहे थे कि वो तो अभी-अभी आये उन्होंने कुछ देखा नहीं. एक सज्जन बोले ‘ मैने सुना कि यहां किसी को पीटा जा रहा है इसलिए चला आया.’ और जब हमारे शर्मा जी से पूछा गया तो वह पान मुँह में रखकर कुछ इस तरह बोले जैसे कि वो गूंगे हो. हमने पुलिस के सामने आँखों देखा हाल प्रसारित कर दिया.
यह सब देखकर लगा कि मुन्नाभाई ने गाँधीगिरी तो सिखा दी पर गाँधी जी के तीन बन्दर आज भी ना बुरा देखते हैं, ना सुनते हैं और ना ही कुछ बोलते है.
क्या ये बन्दर कभी बदलेंगे??
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