Friday, October 5, 2007

पहचान बनाम पहचान

कल मैंने अपने चिट्ठे में पहचान(Identity) की तलाश में भटकते चिट्ठाकरों के बारे में लिखा था. जिस पर प्रतिक्रिया स्वरूप कुछ टिप्णियाँ आयी. यहाँ चिट्ठाकार masijeevi ने कुछ इस तरह कहा........



समीरजी शायद कन्‍फ्यूज हैं (या फिर मैं) या कहें कि एक और पहचान का घपला-


बंधु स्‍पष्‍ट करें कि आप- मिर्ची सेठ- बोले तो पंकज नरूला यानि नारद के मालिक ही हैं (मुझे लगता है कि नहीं)




समीरजी ने टिप्‍पणी शायद यही समझकर की है।




Udan Tashtari ने कहा…
तलाश अभी जारी है???



- अरे , जब मुखिया ऐसा कहेंगे तब तो बड़ा चिन्ता का विषय है। :)



हमें लगा कि आप तक खबर पहुँच गई मतलब हल निकला ही समझो.







बात समझ गया कि ये एक तरह के नाम होने के कारण इस तरह की प्रतिक्रिया आयी है जो स्वभाविक है!! मुझे इस बात का आभास नहीं था कि नारद उवाच में मिर्ची के तड़के का भरपूर उपयोग चटकारे के साथ पहले से किया जा रहा है।



पहले से ही दो चिट्ठाकार इस पहचान (Identity) भ्रमजाल का शिकार हुए है. और अब मैं इसका शिकार नहीं होना चाहता. अतः मै अब नई पहचान नये नाम कामोद के नाम से आप लोगों के समक्ष उपस्थित हूँ.
अब शायद कोई
कन्‍फ्यूजन ना रहे.

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