भारत में लाइन लगना या लगाना कोई नई बात नहीं है। सुबह-सुबह दूध लेने के लिए लाइन, सस्ते गल्ले की दुकान में राशन लेने के लिए लाइन, बिजली पानी के बिल जमा करने के लिए लाइन, हस्पताल में पर्ची के लिए लाइन फिर डॉक्टर के लिए लाइन, और भी ना जाने किस-किस के लिए लाइन!!!. और तो और कुछ चिट्ठाकार भी लाइन में हैं. शायद सरकार ने भी दिल्ली में लोगों की बड़ती लाइन को देखते हुए ब्लू लाइन बस को हरी झंडी दी होगी. पर आज यही ब्लू लाइन बस रेड लाइन बस में बदल चुकी है. सरकारी आकड़ों के अनुसार वर्ष 2007 में अब तक (आज की घटना को छोड़कर) 80 लोगों को अपनी जिन्दगी से हाथ धोना पड़ा.
आज दिन की सबसे बड़ी खबर दिल्ली में ब्लू लाईन बस ने पैदल यात्रियों को कुचला जहाँ 7 लोगों की दर्दनाक मौत घटनास्थल पर ही हो गयी तथा कई अन्य घायल अवस्था में एम्स में भर्ती हैं। जिस पर अविनाश जी पहले ही विस्तार से बता चुके हैं. जिसे मैं दोहराना उचित नहीं समझता. पर क्या कारण है कि 99 प्रतिशत दुर्घटना ब्लू लाइन बस से ही होती हैं(या कहें हुई हैं). वैसे ब्लू लाइन बस का सरकारी बस सेवा से सीधा-सीधा कोई कम्पटीशन नहीं है. क्योंकि सरकारी कर्मचारी अपने सरकारीपन का सदुपयोग करते हैं.(भारत में ये आम बात है). पर कुछ सरकारी कर्मचारी ऐसा नहीं करते तो उनके साथ अभद्र भाषा का प्रयोग गैर सरकारी व्यक्तियों (ब्लू लाइन बस) द्वारा किया जाता है. सरकारी कर्मचारी को देख लेने की बात की जाती है (इस तरह की घटना का मैं स्वयं साक्षी हूँ.)
इस तरह की दुर्घटना ब्लू लाइन बसों के आपसी कम्पटीशन और अधिकाधिक सवारियों को लेने के चक्कर के चक्कर में क्षमता से अधिक गति में बस चलाने का परिणाम है. अक्सर ये देखने में आता है कि एक रूट की ब्लू लाइन बस निर्धारित स्थान पर खड़ी रहती है पर जैसे ही उसी रूट की दूसरी ब्लू लाइन बस आती है तो पहले से खड़ी ब्लू लाइन बस को जैसे पंख लग जाते हैं जिसके परिणाम दिल्ली में हुई आज की जैसी दर्दनाक घटनायें होती हैं. नतीजा आम जनता भुगतती है और माननीय मुख्यमंत्री आम जनता को ही दोष देती है. दोस्तो मैं आपसे पूछता हूँ---
क्या इस तरह की घटनाओं को देखते हुए सरकार का हाथ पर हाथ रखे बयानबाजी करना उचित है???
क्या ब्लू लाइन बस का नाम रेड अलर्ट लाइन बस कर देना चहिए या ब्लू लाइन को ब्लैक लाइन (हटा देना) चाहिए??
1 comment:
आज पहली बार आपके चिट्ठे पर आया. लेख अच्छे लगे.
एक खासा बात: लेखों की लम्बाई एकदम सही है. इससे अधिक लोग पढ नहीं पाते है. इसका ध्यान रखें तो पठनीयता बढ जायगी -- शास्त्री जे सी फिलिप
मेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,
2020 में 50 लाख, एवं 2025 मे एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार!!
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