आया मौसम गरमी का,
आया मौसम नरमी का।
गये कपड़े गरमी वाले,
आये कपड़े गरमी वाले॥
गरमी आते खुल जाते पंखे,
ए.सी, कूलर और हाथ के पंखे।
जब आंख मिचौली करती बिजली,
तब इंवर्टर से मिलती बिजली॥
लू से बचते लू को खाते,
ना जाने कितने लोग।
बढ़ती गरमी के चक्कर में,
चक्कर खाकर गिरते लोग॥
गरमी को दूर भगाने के,
नित नये साधन आते॥
कोल्ड्रिंक, लस्सी, सत्तू, नीबू-पानी,
और भी ना जाने कितने साधन बन जाते॥
गरमी नित नये खेल दिखाती,
अच्छे अच्छों को नाच नचाती॥
सड़क, गली गलियारे सारे,
लगते सब वीरान बंजारे॥
गरमी में सब ढ़ूढ़ते छॉव,
पर अब ना रहे पेड़, ना रहे गॉव
ना चिड़िया का चहकना , ना कौवे की कॉव-कॉव,
ना रहे दादी के किस्से, ना रही पीपल की छॉव॥
नदियां नाले सूखे सारे,
पानी को तरसते सारे।
पानी मिले न मिले,
पर पिज्जा कोक पर पलते सारे॥
गरमी में सब ढ़ूढ़ते नरमी,
जाते पहाड़ ढ़ूढ़ने नरमी॥
पर अब पहाड़ भी ना रहे वो पहाड़,
अपना अस्तित्व खुद ढ़ूढ़ते पहाड़॥
5 comments:
उफ्फ!! ये गरमी!! पहली तस्वीर बोल उठी.
आया मौसम गरमी का,
आया मौसम नरमी का।
गये कपड़े गरमी वाले,
आये कपड़े गरमी वाले॥
इसमें शायद गए कपडे सर्दी वाले लिखना चाहा होगा...
उफ्फ्फ गर्मी से बेहाल हैं फिलहाल तो ...
बहुत सुंदर चित्र जी, ओर उस से भी सुंदर कविता
@ संगीता स्वरूप जी
गये कपड़े गरमी वाले,
आये कपड़े गरमी वाले॥
इसमें 'गये कपड़े गरमी वाले' से तात्पर्य गरमी देने वाले कपड़े मतलब गरम कपड़ों से है.
@ संगीता स्वरूप जी
गये कपड़े गरमी वाले,
आये कपड़े गरमी वाले॥
इसमें 'गये कपड़े गरमी वाले' से तात्पर्य गरमी देने वाले कपड़े मतलब गरम कपड़ों से है.
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