Monday, September 15, 2008

मेरी मर्जी

***** मेरी मर्जी*****

आखिर लोग क्यूँ नहीं सुधरते? कितना कहा जाये, या लिखा जाये या कुछ भी किया जाये लोग आखिर नहीं मानते. यह सब वैसा ही है जैसा देश का कानून और नियम. बनते हैं पर फाइल तक सीमित. जगह जगह इस तरह के इस्तिहार लगे रहते हैं पर सिर्फ लिखने के लिए. आखिर अपनी मर्जी भी कुछ होती है.

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चित्र साभार यहाँ से लिया गया है.

6 comments:

डॉ .अनुराग said...

यही साहब जब इंडिया से बाहर जायेगे तो अपनी मर्जी भूल जायेगे

राज भाटिय़ा said...

अजी इन का भारत हे, इन्हे हक हे उसे जितना चाहे गन्दा करे ,ओर इन्हे सफ़ाई नही भाती,
धन्यवाद

Udan Tashtari said...

अनुज अनुराग बिल्कुल सही कह रहे हैं.

Arshia Ali said...

सही कहा आपने, मेरी मर्जी।

योगेन्द्र मौदगिल said...

मर्जी की जगह खुदगर्जी कैसा रहेगा ?

Anonymous said...

jal wahit kendron ki kami hai
sulabh me paise lagte hai
fir desh anpdhon kaa bhi hai
aur ye shreeman andhraa se uttar pradesh aaye hai to unhe yahi jagah bataai gayi jahaan ye khade hai
hum itne suvidhaa sampann ho gaye hain ki sabji gaadi per baithe baithe kareedte hai
kahin bhi pent utaar dete hai
chahe jahaan thookte hai ab to logo ke mooh par bhi
kyaa bigaadoge desh bhakton
loktantr jo hai