Saturday, May 10, 2008

पीपल की छाँव में कुछ पत्ते

******पीपल की छाँव में कुछ पत्ते ******

पत्ते
अक्सर टूट कर गिर जाते हैं
या जला दिये जाते हैं
जैसे दहेज लोभ में नारी॥

पत्ते
अक्सर पूजे जाते हैं
कभी बेल के, कभी पीपल के
जैसे चुनाव में जनता॥

पत्ते
अक्सर कुचले जाते हैं
या छोड़े जाते है नियति पर
जैसे गरीब का बचपन॥

पत्ते
अकसर पत्ते नहीं रह जाते हैं
जब जाते है सही हाथों में
जैसे बचपन गुरू के हाथ॥






मेरी कलम से निकले कुछ शब्द

1 comment:

Udan Tashtari said...

आह!!! कविता और वाह!! पेन्टिंग्स और फोटो.

बहुत खूब!!



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आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं, इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.

एक नया हिन्दी चिट्ठा किसी नये व्यक्ति से भी शुरु करवायें और हिन्दी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें.

यह एक अभियान है. इस संदेश को अधिकाधिक प्रसार देकर आप भी इस अभियान का हिस्सा बनें.

शुभकामनाऐं.

समीर लाल
(उड़न तश्तरी)