अभी कल ही की बात है मैं छठ पूजा में गया था. पूजा में कुछ पुरुषों के कुछ इस तरह से टीका लगा हुआ था जैसे महिलाओं ने सिंदूर लगाया था. महिलाओं और पुरुषों के चेहरे समान नज़र आ रहे थे. सभी छठ पूजा का आन्नद उठा रहे थे. तभी मैंने एक मासूम बच्ची को सुना जो (शायद इस पर्व से परिचित नहीं थी) अपनी माँ से पूछ रही थी ‘माँ क्या शादीशुदा पुरुष भी सिंदूर लगाते हैं ?’ महिला बोली ‘मर्द सिंदूर नहीं लगाते’. कुछ देर बाद दोनों माँ-बेटी भीड़ में कहीं खो गये. मासूम का सवाल मुझे कुछ गंभीर सा लगा.
आज जब लंच में यह बात अपने मित्रों को बताई तो शर्मा जी अपनी उजड़ी जवानी के तारों झेड़ते हुए बोले- ‘मर्द सिंदूर नहीं लगा सकते क्योंकि फिर हम गंजे क्या करेंगे’. तभी हमेशा शांत रहने वाली शांति मैडम बोली –‘ अगर मर्द सिंदूर लगाएंगे तो मुश्किल हो जाएगी क्योंकि तब वे ऑफिस की कुआंरी लड़कियों को झांसा नहीं दे पाएंगे’.
पीछे हमारी बातें सुन रहे कैंटीन वाले गोपाल बाबू बोले- ‘आदमियों को सिंदूर या और किसी सिंबल की ज़रूरत ही क्या है ? उनका लुटा-पिटा और परेशान चेहरा ही बता देता है कि वे शादीशुदा हैं.’ 75 सावन देख चुके इस जवान से यह सुनकर माहौल ठहाकों से भर गया.
इस बारे में आप क्या कहते हैं
2 comments:
हा हा हा... बढिया!!
भई अब हमारे कहने के लिये कुछ बचाया भी है आपने??
:)
॥दस्तक॥
गीतों की महफिल
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