प्रत्येक वर्ष दशहरा के अवसर पर बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक स्वरूप रावण अहंकार एवं आतंक के प्रतीक का पुतला पूरे देश में जलाया जाता है. जैसे-जैसे देश में बुराई, आतंकवाद व साम्प्रदायिकता बढती जा रही है, वैसे-वैसे प्रत्येक वर्ष बुराई के प्रतीक रावण की ऊंचाई भी बड़ती जाती है. रावण और उसके परिवार के ऊँचाई हर साल बड़ती जाती है. पिछले साल सबसे ऊँचे रावण की ऊंचाई लगभग 95 फुट थी. परन्तु बीते एक साल में हुई आतंकी धटनाओं [पानीपत (समझौता एक्सप्रेस), हैदराबाद तथा अजमेर में हुए बम विस्फोट] से फिर यह जाहिर हुआ कि आतंकवाद अभी भी निरंतर बढता ही जा रहा है अतः इस साल रामलीला के आयोजकों ने रावण की ऊंचाई और भी बढा दी गई है। इस वर्ष बराडा (अजमेर) में तैयार होने वाला रावण देश का सबसे ऊंचा रावण का प्रतीक (पुतला) था. इस बार बराडा का यह रावण लगभग 110 फुट ऊँचा था.
हर साल बुराई के पतीक रावण का दहन किया जाता है. आयोजकों द्वारा रावण के कद ऊँचे से ऊँचे रखने की होड़ रहती है. शायद ये लोग यह भूल जाते हैं कि रावण को अच्छाई का नहीं बुराई का प्रतीक माना जाता है, अहंकार और अधर्म का प्रतीक मना जाता है. जिस प्रकार हर साल रावण के कद में बडोत्तरी हो रही है उसी तरह समाज में अनैतिकता, अधर्म, और आतंक में का कद बड़ते जा रहा है. अब रामायण और रामलीला केवल entertainment का साधन बन गई है. या कहें एक परम्परा है जिसे खोने से बचाने का और अपने को इतिहास से जुड़े का प्रयास है रामलीला . अब न रामयुग है न राम है और ना रावण. हाँ समाज में राम का तो नहीं रावण का प्रतिरूप ( आधुनिक भाषा में क्लोन ) देखने को मिल जाते है. मुँह में वचन राम के और कर्म रावण के होते हैं. हाँ राम के नाम पर राजनीति वाले बहुधा देखने को मिल जाते हैं.
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