Thursday, May 8, 2008

ये आग कब कब बुझेगी ठाकुर...

बिस्फोट से निकली चिंगारी अब थमने का नाम ही नहीं ले रही है. आरोप-प्रत्यारोप जारी है. चिट्ठा नामक गोलाबारी जारी है.. दर्शक दीर्घा पर बैठे सम्माननीय चिट्ठाकार तथा अन्य लोग मज़ा लेकर मुस्कुरा रहे हैं. बिस्फोट से निकली चिंगारी की वास्तविकता क्या है ये तो बिस्फोट करने वाले ही बता सकते है या ब्लोगवाणी के कर्ता धर्ता....

हम तो बस इस रोचक जानकारी में नमक मिर्च लगाकर आप तक पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं..वैसे न्यूज चैनल वाले भी आजकल यही करते हैं. इस चिट्ठा युद्ध में चिट्ठा जगत को कितना लाभ हुआ इसका आकलन अभी बाकी है. जहाँ एक ओर चिट्ठा युद्ध चल रह है वहीँ अभी- अभी मिली ताज़ा ज़ानकारी के भड़ासी अपनी भड़ास निकाल कर पंगेबाज से पंगेबाजी कर रहे हैं. सीधे शब्दों मे अपना उल्लू सीघा कर रहे हैं और बहती गंगा मे हाथ धो रहे है...

वहीं सुनीता जी इस घमासान में दाल रोटी चावल के साथ शाही मलाई कोफ्ता करी के साथ अपनी दुकान चलाने की तैयारी कर रही हैं.. बलबिन्दर जी आज को छोड़्कर कल की दुनिया में रोबोट के साथ कभी खुशी कभी गम खेल रहे हैं और 25 साल बाद भी घर के आगे से दीवार ना हटने का का शोक मना रहे हैं. दूसरी ओर शिव जी अपनी चावल की दुकान खोलकर चावल का अर्थशाष्त्र समझा रहे है... तो गुरनाम जी मुझे लिखना नहीं आता कहकर नये सफर की तैयारी कर रहे हैं.....

इसी के साथ मैं आपको आपकी दुनियां मे वापस लिये चलता हूँ...

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