Thursday, September 11, 2008

सपना जो ना अपना था

***** सपना जो ना अपना था *****
बीत गया जो एक सपना था
आने वाला पल अपना था
पर आने वाला पल भी एक सपना था
सपना जो ना अपना था

जिन्दगी की चाह थी
आने वाली राह आसान ना थी
सपनों की उड़ान थी
पर जिन्दगी से अनजान थी

सपना लेकर एक सपना आया
जीने का एक सपना लाया
राह एक आसान थी
सपने सी अनजान थी

सपना दूर गगन सा था
सपनों में मगन सा था
सपना टूटा जब सपने में
मैं तो अपनी खटियन में था
-कामोद

8 comments:

संगीता पुरी said...

सपना दूर गगन सा था
सपनों में मगन सा था
सपना टूटा जब सपने में
मैं तो अपनी खटियन में था
बहुत अच्छा।

संगीता पुरी said...

सपना दूर गगन सा था
सपनों में मगन सा था
सपना टूटा जब सपने में
मैं तो अपनी खटियन में था
बहुत अच्छा।

वर्षा said...

चलो सपने तो सुकूं देते हैं

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुन्दर कविता हे कमोद भाई,
धन्यवाद

डॉ .अनुराग said...

सपना लेकर एक सपना आया
जीने का एक सपना लाया
राह एक आसान थी
सपने सी अनजान थी

bahut khoob......

सुधीर राघव said...

कमोद भाई अच्छी कविता है।

सुशील छौक्कर said...

सपना लेकर एक सपना आया
जीने का एक सपना लाया
राह एक आसान थी
सपने सी अनजान थी

बहुत ही उम्दा।

Ashk said...

bahut lubhate hain sapne
bahut uljhate hain sapne
bahut banate hain sapne.

sunder rachana !