*****दस साल पहले मारे थे जो शेर*****
दस साल पहले मारे थे जो शेरवो हो गये अब बब्बर शेर
वो कहते हैं हमने चुराया है उनका शेर
जा के कह दो उनसे शेर हमने भी बहुत मारे हैं
शेर अपना हो या पराया शेर ही होता है
शेर जंगल में हो या पिंज़रे में शेर ही होता है
दस साल पहले मारे थे जो शेर
वो हो गये अब बब्बर शेर
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*****वफ़ा की उम्मीद*****
जिनसे थी वफ़ा की उम्मीदवो बेवफ़ा निकले
ज़माने की बात छोड़ो
जब अपने ही ख़फा निकले
सोचा गुलशन से दो फूल हम भी तोड़ लें
फूल कम काँटे ही साथ निकले
जिन्हें हम दिल के करीब समझे थे
वो ही आस्तीन के साँप निकले
कुछ ऐसे भी मिले सफ़र में
जो कदम से कदम मिलाकर चले
ग़म के उस दौर में
हाथ थामने वाले निकले
6 comments:
वाह वाह
das saal purane sher ab babbar sher ban kar samane aye . bahut badhiya.
शेर जो दॆखंन मे गया, शेर ना मिला कॊई.
पता हे क्यो , अजी सारे के सारे, ब्बबर शेर. बब्बर शेरनिया तो आप ने पकडली.
ओर भईया फ़िर आप वफ़ा की बात भी कर रहे हे, अजी शेर गुलशन मे नही जंगल मे मिलते हे आप जंगल मे जाओगे तो फ़ुल थोडे कांटे ही मिलेगे ना, ओर फ़िर आप जिस महबुबा को वेवफ़ा कह रहे हे दर असल वो आप के शॆर देख कर भाग गई, वेसे वो वेवफ़ा नही थी, ओर आप के साथ जंगल मे कोन कदम से कदम मिला कर चल सकता हे,पता नही किधर से आप का शेर निकल आये, मियां आप तो भाग लोगे, मारा जाये गा कदम से कदम मिलाने वाला.
लेकिन एक बात हे, आप जंगल मे जा कर कविता बहुत सुन्दर लिख लेते हो. धन्यवाद आप के शेरो ओर कविता का
वाह वाह!
हमने आपकी सूनी, कामोद जी - अब आप भी तो सुनिए. Of course, हम उतनी अच्छी नहीं लिख पाये तो क्या?
छोड़ बगिया को परे, जंगलों में जाते हैं
दर्द और कांटे ही, हिस्से में उनके आते हैं
दर्द से भाग के, महफ़िल में जब भी आते है
शेख जी जम के, शेर दो-एक सुना आते हैं
वो जो सुनाता था लोगो को शेर
सुना है आजकल चिडियाघर में है ......
आज मुझे आप का ब्लॉग देखने का सुअवसर मिला।
वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है।
‘…हम चुप है किसी की खुशी के लिये
और वो सोचते है के दिल हमारा दुखता नही’’
आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी और हमें अच्छी -अच्छी रचनाएं पढ़ने को मिलेंगे
बधाई स्वीकारें।
आप मेरे ब्लॉग पर आए, शुक्रिया.
मुझे आप के अमूल्य सुझावों की ज़रूरत पड़ती रहेगी.
...रवि
http://meri-awaj.blogspot.com/
http://mere-khwabon-me.blogspot.com/
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