*****आवारा पागल इंसान *****
आतंकवाद जब तब दस्तक देता रहता है. स्थानीय लोग कभी धर्म तो कभी जाति के नाम पर आतंक फैलाते हैं. मरने वाले अक्सर उसी जाति या धर्म के होते है जो आतंक करते हैं. कुछ समय पहले गुजरात मुम्बई में हुए विस्फोटों में मानव बम भी अपना काम कर गये.
उन्ही सब से प्रेरित हैं ये कुछ शब्द .
आवारा पागल इंसान जो करता है दूसरों को परेशान जिसका न कोई दीन-ईमान आवारा पागल इंसान
जो करता है समय को बरबाद हो न सकेगा वो कभी आबाद है न उसे वक़्त की पहचान आवारा पागल इंसान
जो करता है अपनों को बरबाद करता है दूसरों को आबाद है ऐसा ये पागल इंसान आवारा पागल इंसान
जो आता है दूसरों के बहकावे में तब न रहता है अपने आपे में है उसकी ज़िंदगी शमशान आवारा पागल इंसान
जो रहता है सदा शक के घेरे में कभी पुलिस तो कभी वकील के झमेले में कभी फुटपात तो कभी जेल है उसका मकान आवारा पागल इंसान
-कामोद
3 comments:
इशारों में बात कह दी है बंधू......
बेहतरीन..सटीक..
बहुत ही सुन्दर रचना, धन्यवाद
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