Saturday, August 23, 2008

बिच्छू घास

***** बिच्छू घास*****

bbb

कल की चित्र पहेली में अलग-अलग तरह के उत्तर मिले. पर सबसे पहले पकड़ा अनामी डीसीपी ने. पर समीर जी, राज जी और अरविन्द जी सही उत्तर देने में अंतत: सफल रहे. समीर जी तो खुशी में जिन्दाबाद- जिन्दाबाद के नारे भी लगा बैठे. :)

चित्र पहेली में जो पौधा दिखाया गया था उसे भारत में सामान्यतया  बिच्छू घास या बिच्छू बूटी के नाम से जाना जाता है और यह बहुतायत से पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाता है. इसे Stinging Nettle नाम से भी जाना जाता है. इसका बैज्ञानिक नाम Urtica dioica है यह यूरोप, एशिया, उत्तरी अमेरीका और उत्तरी अफ्रीका में पाया जाता है.

बिच्छू घास पूरी तरह कांटों से भरा होता है जिनमें acetylcholine, histamine, 5-HT और formic acid का मिश्रण होता है जिससे इसको छूने मात्र से असहनीय जलन और खुजली महसूस होती है और दाने निकल आते हैं. इसलिए इसे खुजली वाला पौधा के नाम से भी पहचाना जाता है. 

इसका प्रयोग दवाई के रूप में किया जाता है. यह घुटनों और जोड़ों के दर्द में असर अचूक माना जाता है. स्थानीय लोग इसे सीधे दर्द वाले स्थान पर लगाते हैं. यह अर्थेराइटिस (arthritis) में इसका प्रयोग किया जाता है. इसे हर्बल दवाईयों के निर्माण में प्रयुक्त किया जाता है. 

अमेरिका में तो इसकी खेती भी की जाती है. वहाँ होने वाली बिच्छू घास कुछ  लाल की होती है और पत्ते गोलाई लिये होते हैं. जिसे उत्तराखण्ड में अल्द के नाम से जाना जाता है.  बिच्छू घास के कोमल पत्तों का सूप और सब्जी भी बनाई जाती है. जिसे हर्बल डिश कहते हैं. यह गरम तासीर की होती है और इसका स्वाद कुछ-कुछ पालक की तरह होता है. इसमें बिटामिन A,B,D , आइरन, कैल्सियम और मैगनीज़ प्रचुर मात्रा में होता है.  

उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ शहर  में होने वाले बग्वाल मेले के प्रसिद्ध पत्थर युद्ध में घायल लोगों का इलाज किसी ह्स्पताल में न कराकर मन्दिर के पीछे होने वाले बिच्छू घास से ही की जाती है. उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा शहर में एक एनजीओ ने पास के गांवों से लगभग 700 महिलाओं को काम पर लगा रखा है जो ऊन और बिच्छू घास से मेरीनो सब्जी डाई का उपयोग करते हुए खूबसूरत शॉल बनाती हैं. जिसे पंचुचूली शॉल के नाम से जाना जाता है.

भारत में यह जंगली पौधे के रूप में अपने आप पैदा हो जाता है. इसका प्रयोग स्थानीय लोग पशुओं के चारे के रूप में साधारणतया करते हैं. इसका प्रयोग दण्ड देने के लिए भी किया जाता है. बिच्छू घास को पाने में भिगाकर लगाने से दण्ड से अपराधी को दादी-नानी याद आने लगती है:)  उत्तराखण्ड के कई इलाकों में शराबियों को सुधारने के के लिए बिच्छू धास का सहारा भी लिया.  

शनिदेव के प्रकोप से बचने और पटाने के लिए भी  बिच्छू धास  का प्रयोग ज्योतिषी बताते हैं. नीलम,नीलिमा,नीलमणि,जामुनिया,नीला कटेला, आदि शनि के रत्न और उपरत्न हैं. अच्छा रत्न शनिवार को पुष्य नक्षत्र में धारण करना चाहिये. इन रत्नों मे किसी भी रत्न को धारण करते ही चालीस प्रतिशत तक फ़ायदा मिल जाता है. जो इन रत्नों का जुगाड़ ना कर सके वह बिच्छू बूटी की जड़ का प्रयोग कर सकता है.

बिच्छू बूटी की जड़ या शमी जिसे छोंकरा भी कहते है की जड शनिवार को पुष्य नक्षत्र में काले धागे में पुरुष और स्त्री दोनो ही दाहिने हाथ की भुजा में बान्धने से शनि के कुप्रभावों में कमी आना शुरु हो जाता है.

13 comments:

Udan Tashtari said...

अरे वाह!! जीत गये!! :)

Arvind Mishra said...

विस्तार से जानकारी देने के लिए शुक्रिया

पंकज सिंह महर said...

कामोद जी,
मैं तो बिच्छू घास को उत्तराखण्ड की स्थानीय घास ही समझता था, लेकिन इसका फैलाव तो अमेरिका तक है। इस अमूल्य जानकारी हेतु धन्यवाद।
वैसे बिच्छू घास को उत्तराखण्ड में कंडाली/सिसौण/सिन्न कहा जाता है। इसकी सब्जी भी बनाई जाती है और इसको कूट कर और पकाकर दुधारु जानवरों को भी दिया जाता है, इससे दूध की मात्रा बढ़ती है।
इलाज- यदि किसी को बिच्छू घास लग जाये तो काफी जलन होती है, इसका देशी इलाज है, नाक (नाक बहने पर निकलने वाला द्रव, जिसे हमारे यहां "सिकाण" कहते हैं,) इस पर लगाया जाय तो तुरन्त आराम मिलता है।

Anonymous said...

पर इस घास का बीज मुझे दिल्ली मे किस नाम से मिल सकता है
नीलम की जगह ईस्तमाल करने के लिए

kamal.del@aol.in

कामोद Kaamod said...

kamal ji
ye delhi me nahi mileta
hill station jao kabhi to waha aasani se mil jayega

Yogi negi said...

meri dadi ne bnayi thi sison ki sbji mja aa gya ..... bachpan mai bot time jb galat akm krta tha ghar wale isk namse drate the

Unknown said...

M.p.me kahaa or kis name se milega or kahaa milega plzzzzz contact my no. 9406685941

kaps said...

Bhaang ki pattiyan ragdane se bhi theek hoti hai iski jalan.

Unknown said...

मुझे भी चाहिये कृपया

Unknown said...

मुझे भी चा हि ये कृ पय्या

Dr Raj Thakur said...

Bagnakhi purane log iske falo ko apne jute ke sol me dalte the usse jute char char ki aavaj karte hai

Dr Raj Thakur said...

Dhanyvad

Unknown said...

If anyone has found it please mail me on hardik.hawk@gmail.com