Tuesday, June 24, 2008

चित्र पहेली का– फल (उत्तर)

***** चित्र पहेली का– फल (उत्तर) *****

कल की चित्र पहेली में जागरूक पाठकों ने बुद्धिकौशल का परिचय देते हुए विभिन्न नाम से पहेली को बताया। लीची, गुलाब जामुन, चेरी, आलूबुखारा...यहाँ तक कि डायनासोर के अण्डे भी....

पर पहली बाज़ी मारी अभिषेक आन्नद ने. बहुत उधेड़बुन के बाद समीर जी ने भी सही निशाने पर तीर लगाया वो भी इसके बैज्ञानिक नाम के साथ...
आप सभी को बधाई......

इस पहेली का सही उत्तर काफल है जिसका बैज्ञानिक नाम Myrica Esculenta है. काफल गहरे लाल रंग का फल होता है जो मार्च-अप्रेल के महिने में पकता है. इसे नमक-तेल लगाकर खाने का अपना ही मज़ा है.

काफल के बारे में उत्तराखंड के लोक कवि गुमानी ने अपनी कविता में कुछ इस तरह कहा है -

खाणा लायक इन्द्र का , हम छियाँ भूलोक आई पड़ाँ।
पृथ्वी में लग यो पहाड़ हमारी थाती रचा दैव लै॥
योई चित्त विचारी काफल सबै राता भया क्रोध लै।
कोई बुड़ा ख़ुड़ा शरम लै काला धुमैला भया॥

काफल से जुड़ी एक लोक कथा जो मैने सुनी है कुछ इस तरह है. ...

एक पहाडी के समीप वाले गाँव में एक औरत अपने बेटे के साथ रहती थी. उनके पास धन की कमी होने के कारण वह जंगल के फल खाकर ही अपना जीवन निर्वाह करते थे. वह औरत बडा ही कठिन परिश्रम करती थी, लेकिन किसी पर भी यकीन नही करती थी. एक दिन वह जंगल से रसीले काफल के फल तोडकर लाई. उन काफलों को जंगली पक्षियों से बचाने के लिये अपने बेटे से उन काफलों से भरी टोकरी की देखभाल करने के लिये कहा और खुद खेतों में काम करने चली गयी. रसीले काफल देखकर बच्चे का मन काफल खाने को ललचाया, लेकिन अपनी माँ के डर से उसने एक भी दाना नहीं खाया.

वह औरत जब शाम को खेतों से थकी हुई घर पहुँची तो काफल धूप से थोडा सूख गये थे, जिससे उनकी मात्रा कम लग रही थी. यह देख कर औरत को गुस्सा आ गया, उसको लगा कि बच्चे ने टोकरी में से कुछ काफल खा लिये हैं. उसने गुस्से में एक बडा पत्थर बेटे की तरफ फेंका जो बच्चे के सिर पर लगा और बच्चा वहीं मर गया. वो फल बाहर ही पडे रहे, औरत दूसरे दिन फिर जंगल गयी. जब वह वापस आयी तो काफल बारिश में भीग कर फूल गये थे, और टोकरी भरी हुयी दिखने लगी. तब उस औरत को अपनी गलती का अहसास हुआ. अपनी नासमझी के कारण उसने अपना प्यारा सा बेटा मार दिया था.

कहते हैं कि वह बच्चा “घुघुती” पक्षी बन कर अमर हो गया. इन घुघुती पक्षियों के झुण्ड अब भी गाँव के पास ये आवाज लगाते हुये सुने जाते
"काफल पाको, मैंल नि चाख्यो"(काफल पके, पर मैंने नहीं चखे)



बेडु पाको बारो मासा की धुन तो सुनी ही होगी आपने आमिर खान के कोकाकोला वाले बिज्ञापन में. साथ ही राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म विवाह में गाने की पहली लाईन में इसी धुन का प्रयोग किया गया है. जो उत्तराखंड के गायक गोपाल बाबू गोस्वामी द्वारा गाये इसी गाने की चर्चित धुन है.

ये लोकगीत कुछ इस तरह है....

बेडु पाको बारो मासा, ओ नरण काफल पाको चैता मेरी छैला
बेडु पाको बारो मासा, ओ नरण काफल पाको चैता मेरी छैला - २
भुण भुण दिन आयो -२ नरण बुझ तेरी मैता मेरी छैला -२
बेडु पाको बारो मासा -२, ओ नरण काफल पाको चैत मेरी छैला - २

आप खांछे पान सुपारी -२, नरण मैं भी लूँ छ बीड़ी मेरी छैला -२
बेडु पाको बारो मासा -२, ओ नरण काफल पाको चैता मेरी छैला - २

अल्मोड़ा की नंदा देवी, नरण फुल छदुनी पात मेरी छैला
बेडु पाको बारो मासा -२, ओ नरण काफल पाको चैता मेरी छैला - २

2 comments:

Udan Tashtari said...

वाह!! जबाब सुनाने में क्या कथा सुनाई है और क्या जानकारी दी है, आभार...और लाईये ऐसी पहेलियाँ.

सागर नाहर said...

बहुत उम्दा जानकारी दी आपने, लोककथा के साथ।
बधाई।
॥दस्तक॥
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