*****ब्लॉगिंग का धर्म*****
ब्लॉगिंग का धर्म
ब्लॉगिंग का भी होता है धर्म
धर्म जिसका नहीं कोई मर्म
धर्म हिन्दू है या मुसलमान
इससे हूँ मैं अनजान
ब्लॉगिंग का धर्म कहाँ से आया
जिसने ढ़ूँढ़ा उसने पाया
ढ़ूँढ़ी गई ब्लॉगिंग की जात
फिर मचाया उस पर उत्पात
तेरी लेखनी हिन्दू है
तेरी लेखनी मुसलमान
धर्म आया बीच बन दीवार
किसने दिया तुमको ये अधिकार
बाँट दिया जिसने जग सारा
क्यूँ लेते हो उसका सहारा
न बनाओ इसे यूँ आवारा
यही तो है हमारी एकता का सहारा
-कामोद
पिछले कुछ दिनों से ब्लॉग जगत में ब्लॉगिंग हिन्दू बनाम मुसलमान बन रही है। ब्लॉगर ताल ठोकर खुद हो साबित करने का प्रयास कर रहा है। हिन्दू मुसलिम विवाद यहाँ साफ दिखाई देता है । क्या यह ब्लॉगिंग और ब्लॉग जगत में धर्म का प्रवेश है।
ब्लॉगिंग का धर्म
ब्लॉगिंग का भी होता है धर्म
धर्म जिसका नहीं कोई मर्म
धर्म हिन्दू है या मुसलमान
इससे हूँ मैं अनजान
ब्लॉगिंग का धर्म कहाँ से आया
जिसने ढ़ूँढ़ा उसने पाया
ढ़ूँढ़ी गई ब्लॉगिंग की जात
फिर मचाया उस पर उत्पात
तेरी लेखनी हिन्दू है
तेरी लेखनी मुसलमान
धर्म आया बीच बन दीवार
किसने दिया तुमको ये अधिकार
बाँट दिया जिसने जग सारा
क्यूँ लेते हो उसका सहारा
न बनाओ इसे यूँ आवारा
यही तो है हमारी एकता का सहारा
-कामोद
sahi baat keh di, aur sahi waqt par.
ReplyDeleteबिल्कुल सही अब ब्लॉगरों के भी धर्म हो गये हैं अगर दोनों के शब्दों को ध्यान से देखेंगे तो शायद हिन्दी के ही पाये जायेंगे और उन्हें अलग करना बहुत मुश्किल है जैसे दोनों धर्म के लोगों का खून मिलाकर अलग कर पाना बहुत मुश्किल है। बढ़िया बात और संदेश बस लोग समझ लें।
ReplyDeleteसुंदर संदेश देती खूबसूरत रचना !!
ReplyDeleteकाश कि इंसानियत का धर्म सभी निभा सकें....तो सब ठीक हो जायेगा.....
ReplyDeleteधर्म का वास्तविक अर्थ यदि ये लोग समझ लें तो फिर कोई विवाद ही न रहे.....
ReplyDeleteसुन्दर रचना!!
कुछ लोग इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी कहते हैं।
ReplyDeleteसारा प्रकरण खेदजनक
मन को छू लेनेवाली कविता के लिये बधाई। आपके विचारों से सहमत हुं भाई। काश! सभी ऐसा सोचते।
ReplyDelete"...क्या यह ब्लॉगिंग और ब्लॉग जगत में धर्म का प्रवेश है..." बिलकुल नहीं। यह "राष्ट्रवाद" और "कट्टरता" के बीच का विवाद है, और किसी बड़े आदमी ने कहा है कि "जो तटस्थ रहेगा, समय गिनेगा उनके भी अपराध…" :)
ReplyDelete@ सुरेश चिप्लुंकर जी - आप इसे "राष्ट्रवाद" और "कट्टरता" के बीच का विवाद" बताते हैं लेकिन जब राष्ट्रवाद की बात आती है तो धार्मिक कट्टरता बीच में क्यूँ आ जाती है!!! क्या यह राष्ट किसी धर्म विशेष अथवा जाति विशेष का है!!!? मेरी जानकारी इस बात का समर्थन नहीं करती।
ReplyDelete@ सुरेश चिप्लुंकर जी - आप इसे "राष्ट्रवाद" और "कट्टरता" के बीच का विवाद" बताते हैं लेकिन जब राष्ट्रवाद की बात आती है तो धार्मिक कट्टरता बीच में क्यूँ आ जाती है!!! क्या यह राष्ट किसी धर्म विशेष अथवा जाति विशेष का है!!!? मेरी जानकारी इस बात का समर्थन नहीं करती।
ReplyDeleteबेहद सुल्झी और प्रेरक कविता.......अतिसुन्दर भाव और शब्द जो रचना को सार्थक बना दिया है ......अतिसुन्दर
ReplyDeleteIs se achhi kavita to koi bachha likh le.
ReplyDeletetumhare apne hi shabdo me-
लेकिन जब राष्ट्रवाद की बात आती है तो धार्मिक कट्टरता बीच में क्यूँ आ जाती है!!!
yani ap bhi mante he ki rastrawad aur kattarpan do alag-alag siro par khadi cheeje he. manthan karo, baat khud samajh me aa jawegi.
कामोदजी आपको सैल्यूट, मेरा इस बारे में यही कहना है-
ReplyDeleteइंसान का इंसान से हो भाईचारा,
यही पैगाम हमारा...