पहाड़ों में अंग्रेजों के आने के साथ ही कुछ सामाजिक परिवर्तन होने लगे। खासकर उन लोगों में जो अंग्रेजों के धरों में नौकरी करते थे। हिमालय क्षेत्र के कुछ परिवारों ईसाई धर्म स्वीकारा और चर्च बने। पियानो, हार्मोनियम, फीडल, बिगुल या मशकबीन (बैगपाईपर) का हिमालय पर आगमन हुआ।
नैनीताल से प्रकाशित पहाड़(1999) के अनुसार लोगों के रहन सहन, खान पान, पहनावे और मकानों में भी इसका असर दिखने लगा। लोगों में 'साहब' बनने की चाह के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा का भ्रष्ट उच्चारण होने लगा। 18वीं सदी के प्रसिद्ध नाटककार भवानीदत्त थपल्याल के नाटक "प्रह्लाद" का अंश है जिसमें तत्कालीन समय में अंग्रेजों के पहाड़ी क्षेत्र में आने के बाद के सामाजिक परिवर्तनों को बताने की कोशिश की गई है।
अम टो मिष्टर हो गया अब तो यूरप जाना मांगटा है
डाल भाट साग रोटि ये तो खावै काला लोग।
अंडा मुर्गी और शराब मिष्टर खाना मांगता है॥
माटा पिटा वा चाचा चाची ये टो पुकारै काला लोग।
पा पा मामा अंकिल आंट मिष्टर केना मांटता है॥
भाई बहन क्या बेटा बेटी एसा बोले काला लोग़।
ब्रादर सिष्टर सन्नैड डौटर मिष्टर बोलना मांटता है॥
अंगा चोगा ढीला ढाला ये टो पैने काला लोग।
कोट फाटा हो पीछे से मिष्टर पेन्ना मांटता है॥
टोपी ढोटी कुर्टा गुलबन्ड ये टो पैने काला लोग।
हैट पैंट शर्ट कौलर मिष्टर पेन्ना मांटता है॥
खाटे पीटे पूजा कर्टे चौका दे के काला लोग।
ई टिं ड्रिं किं होटल में मिष्टर टेबुल मांटता है॥
पाखाने में चूटड़ ढोवै जिमी पै हग्ने वाला काला लोग।
हग्गा मूटा टांग उठा कर मिष्टर पोंछना मांटता है॥
ढ़ोलक टबला टुरी सिटार ये टो बजा वै काला लोग।
हार्मोनियम बिगुल फीडल हम्म बजाना मांगटा है॥
लेखनी प्रभावित करती है.
ReplyDeleteअरे कामोद भाई यह काला आदमी आप को धन्यवाद बोलना मांगता. टुम ने बोत अच्छा लिखा है
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