*****स्वतंत्रता दिवस- स्वतंत्रता के बदलते मायने और इसका स्वरूप*****
स्वतंत्रता मतलब आज़ादी..... आज़ादी किसी कैद से, किसी पिंजरे से.. 62 साल पहले हम भारतीय भी आज़ाद हुए थे विदेशी राजनीति और विदेशी वर्चस्व से... नयी उमंग नये सपने.... अपनेपन का अहसास...
आज़ादी से पहले संधर्ष एक गुलामी से था.... विदेशी वर्चस्व और तानाशाही से था. बढ़ते अत्याचार और दोहरी राजनीति के विरूद्ध था... संधर्ष अपने हक़ और अधिकार के लिए था जो अपने होते हुए भी अपने नहीं थे... दाता होते हुए भी याचक बन गये थे...
हमारी संस्कृति 'अतिथि देवो भव:' जिस पर हमें कभी गर्व था और आज भी है हमारे लिए अभिशाप बन गई... हम लुटते रहे पर उफ़ तक नहीं की.... सोने की चिड़िया से पिंज़रे की चिड़िया बन गये...
पानी सर से ऊपर गया लुटने का अहसास हुआ पैर से धरती और सर से आकाश गया फिर आजादी का संधर्ष हुआ कुछ लड़े कुछ मिट गये गरम, नरम और उग्र दल बन गये.
गाँधी, नेहरू, सुभाष, आदि के संधर्ष और चन्द्रशेखर, भगत सिंह, राजगुरू और बिसमिल आदि के बलिदान से आज़ादी मिली.. आज़ादी मिली तो राजनीति शुरू हो गई.. पाकिस्तान बन गया... देश में अन्दरूनी राजनीति शुरू हो गई.. सता संधर्ष और राजनीति की... सरदार पटेल ने अपना राजनितिक बुद्धि-कौशलता से देश को एक डोर में पिरोया..
आज भी हम स्वतंत्र हैं ... गर्व है हमें अपनी आजादी पर ... पर गर्व नहीं है अपने राजनेताओं पर.. हर कोई नेता बनने को तैयार है.. बाहुबली, डाकू-लुटेरे, सजायाफ़ता, तथाकथित सामजिक ठेकेदार और छुटभैये.. सभी राजनीति से अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं...
हम स्वतंत्र है... इसलिए दंगे-तोड़फोड़ करना हमारा अधिकार है .. अभिव्यक्ति का अधिकार.. कुछ भी हो तो आग लगाना, जाम लगाना, सरकारी सम्पत्ति तोड़ना... अपहरण करना, हत्या-बलात्कार करना, लूट मारपीट करना तथाकथित लोगों का अधिकार बन गया है...
हम स्वतंत्र है... इसलिए जो चाहते हैं कर सकते हैं.. चाहे भूत-प्रेत, सेक्स और व्यक्तिगत मुद्दों के नाम पर टी. आर. पी. हो या फिल्म के नाम पर कुछ भी परोस देना... सब चलता है...
हम स्वतंत्र हैं इसलिए आज़ादी और समानता हमारा अधिकार है... अधिकार मांगने के लिए प्रदर्शन... समलैंगिकता जैसे संवेदनशील बिषय पर बदलते विचार और उस पर कानून की मुहर...
स्वतंत्रता का भरपूर उपयोग वो भी करते हैं जो करप्शन कर रहे हैं... नकली को असली बनाते हैं... वो लूटते है हम लुटते हैं ... जानते हैं फिर भी पिटते हैं... लुटते हैं फिर भी डरते हैं... खुश रहते हैं चलो आज तो हम बच गये....
इतने सालों बाद स्वतंत्रता के सवरूप बदल गया है. स्वतंत्र हैं फिर भी स्वतंत्रता की तलाश है...
अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं । सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं ॥
aajadi ki badhayiya.
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