Friday, November 28, 2008

कहाँ गये राज ठाकरे अब!!!

*****कहाँ गये राज ठाकरे अब!!!*****

देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई पर आतंकियों का अब तक का सबसे बड़ा हमला हुआ. ताज और ओबेरॉय सहित 10 से ज्यादा जगहों को निशाना बनाया गया. जिसमें 100 से ज्यादा लोग अपनी जान गवां बैठे. इसी आतंकी हमले से लोहा लेते हुए ए.टी.एस. प्रमुख हेमंत करकरे  सहित 14 जाबांज सिपाही शहीद हो गये. ऐसे ज़ांबाज़ सिपाहियों को सलाम.mt

इस हमले से मुम्बई का जनजीवन ठप सा हो गया. स्कूल, कॉलेज, ऑफिस सभी बन्द कर दिये गये. सेबी ने शेयर मार्केट भी बन्द कर दिया. कभी ना सोने और रूकने वाली मुम्बई ठहर गई. विदेशी सैलानियों पर डर और खौफ आसनी से देखा जा सकता था. इंगलैंड की क्रिकेट टीम बीच में ही वापस जाने लगी.

इस आतंकी हमले के बाद नेताओं के बयान आने स्वभाविक थे. कई सम्माननीय नेताओं ने मुम्बई का दौरा किया. पर जिस नेता की टिप्पणी आने का इंतजार था वो पता नहीं कहाँ गायब हो गया. कुछ महिनों पहले मुम्बई और देश को भाषा और क्षेत्र के नाम पर बाँटने वाले और मुम्बई में उत्तर भारतीयों के खिलाफ आग उगलने वाले राज ठाकरे इस समय कहाँ गये.  कहाँ गये मनसे के कार्यकर्ता. कोई प्रतिक्रिया नहीं आई उनकी ओर से जो मुम्बई को अपनी जागीर बताते थे. जबकि राज ठाकरे जो जेड सुरक्षा दी गई है.ये बड़ी विडम्बना की बात है कि देश को बाँटने की बात करने वाले को इतना बडा सुरक्षा घेरा दिया गया है.

आखिर क्यूँ और कैसे भारत में आतंकी बड़ी आसानी से प्रवेश कर जाते हैं?. मेरा मानना है कि राजनीति और भ्रस्टाचार इसके लिए दोषी है. अगर आप यहाँ कोई गलत काम करते हैं और गलती से पकड़े जाते हैं तो आप लेन-देन के माध्यम से आसानी से बच सकते हैं.  

राजनीति और विशेषकर वोट की राजनीति ने कड़े फैसले लेने से हमेशा रोका है. संसद पर हमले के दोषी पाये गये अफज़ल गुरु को फाँसी की सज़ा दिये जाने के बाद भी आज वो जिन्दा है. आखिर क्यूँ?? क्युँ नहीं भारत में अमेरिका की तरह कडे फैसले लेने का साहस है? क्यूँ भारत में देश की सुरक्षा के नाम पर खिलवाड़ होता है जबकि अमेरिका में सुरक्षा के लिए भारत के रक्षा मंत्री के कपड़े उतारने से भी परहेज नहीं किया जाता है. क्यूँ भारत में वोट की राजनीति खेली जाती है जबकि अमेरिका विरोध के बाद भी इराक के राष्ट्रपति को  फ़ाँसी दे दी जाती है.? 

10 comments:

  1. प्रिय बन्धु
    टीका टिप्पणियाँ तो हम पहले भी बहुत कर चुके. इससे केवल दरारें बढती हैं.फिर इस कार्य के लिए राजनीतिक नेता तो हैं ही. इस समय कुछ प्रश्नों पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए. १. यह कि हमारी खुफिया व्यवस्था कब चाक़-चौबंद होगी. २. यह कि इतनी बड़ी-बड़ी घटनाओं को हम कब गंभीरतापूर्वक लेंगे. ३.यह कि हम साम्प्रदायिक बुनियादों पर कबतक एक दूसरे की छीछालेदर करते रहेंगे और बिना किसी भेद-भाव के कम-से-कम देश से जुड़े मुद्दों पर एकजुट नहीं होंगे. ४. यह कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि हमारी अनेक दुर्बलताओं का लाभ उठाकर पश्चिमी देशों ने हमारे विरुद्ध एक गुप्त षड़यंत्र रचने की योजना बनायी हो. ऐसा इसलिए भी सम्भव है कि दक्षिण एशियाई देशों का और विशेष रूप से भारत का विकास उन्हें बर्दाश्त नहीं है. और फिर पाकिस्तानियों को ख़ास तौर पर धर्म के नाम पर भड़काकर और भारतीयों को भ्रष्टाचार का लाभ उठाकर इस कार्य में आसानी से झोंका जा सकता है. हमें और भी ढेर सारे पहलुओं पर सोचना होगा.
    हम कानून कड़े करने की बात करते हैं. हाँ कानून कड़े होने चाहियें. किंतु मुक़दमा चलाये जाने या यातनाएं देने के लिए नहीं. देशविरोधी आतंकवादी गति-विधियों में जो लोग भी रंगे हाथों पकडे जाएँ उन्हें जनता के बीच खड़ा करके गोली मार देनी चाहिए. मुक़द्दमे केवल उनपर चलाये जाएँ जो संदेह के घेरे में हों और जिन्हें घटना स्थल से न पकड़ा गया हो. जो लोग मोबाइल या फोन से बम पाये जाने सम्बन्धी झूठी सूचनाएं पुलिस को देते हैं उन्हें भी कड़े दंड दिए जाने चाहिए. जिनके पास से खुले आम आर डी एक्स पकड़ा जाता है, वे कुछ भी सफाई दें, उन्हें आतंकी मानना चाहिए. ए.टी.एस की ही तरह हर संवेदनशील शहर में एनजीओज़ के आतंक विरोधी दस्ते बनाए जाने चाहिए. जो बारीकी से असामान्य गतिविधियों का विश्लेषण करते रहें और ए.टी.एस के सहयोगी बनें.

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  2. ham bhi yahi soch rahe they ki kahan hai ab thaakre gi

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  3. आपने कभी सोचा है की अमेरिका पे दुबारा हमला करने की हिम्मत क्यों नही हुई इनकी ?अगर सिर्फ़ वही करे जो कल मनमोहन सिंह ने अपने भाषण में कहा है तो काफ़ी है.....अगर करे तो....
    फेडरल एजेंसी जिसका काम सिर्फ़ आतंकवादी गतिविधियों को देखना ....टेक्निकली सक्षम लोगो को साथ लाना .रक्षा विशेषग से जुड़े महतवपूर्ण व्यक्तियों को इकठा करना ....ओर उन्हें जिम्मेदारी बांटना ....सिर्फ़ प्रधान मंत्री को रिपोर्ट करना ,उनके काम में कोई अड़चन न डाले कोई नेता ,कोई दल .......
    कानून में बदलाव ओर सख्ती की जरुरत .....
    किसी नेता ,दल या कोई धार्मिक संघठन अगर कही किसी रूप में आतंकवादियों के समर्थन में कोई ब्यान जारीकर्ता है या गतिविधियों में सलंगन पाया जाए उसे फ़ौरन निरस्त करा जाए ,उस राजनैतिक पार्टी को चुनाव लड़ने से रोक दिया जाए .उनके साथ देश के दुश्मनों सा बर्ताव किया जाये .......इस वाट हम देशवासियों को संयम एकजुटता ओर अपने गुस्से को बरक्ररार रखना है .इस घटना को भूलना नही है....ताकि आम जनता एकजुट होकर देश के दुश्मनों को सबक सिखाये ओर शासन में बैठे लोगो को भी जिम्मेदारी याद दिलाये ....उम्मीद करता हूँ की अब सब नपुंसक नेता अपने दडबो से बाहर निकल कर अपनी जबान बंद रखेगे ....इस हमले को याद रखियेगा ......ये हमारे देश पर हमला है !

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  4. " शोक व्यक्त करने के रस्म अदायगी करने को जी नहीं चाहता. गुस्सा व्यक्त करने का अधिकार खोया सा लगता है जबआप अपने सपोर्ट सिस्टम को अक्षम पाते हैं. शायद इसीलिये घुटन !!!! नामक चीज बनाई गई होगी जिसमें कितनेही बुजुर्ग अपना जीवन सामान्यतः गुजारते हैं........बच्चों के सपोर्ट सिस्टम को अक्षम पा कर. फिर हम उस दौर सेअब गुजरें तो क्या फरक पड़ता है..शायद भविष्य के लिए रियाज ही कहलायेगा।"

    समीर जी की इस टिपण्णी में मेरा सुर भी शामिल!!!!!!!
    प्राइमरी का मास्टर

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  5. सच मै अब शोक या खेद नही, अब तो गुस्सा आ रहा है, बाकी मै युग-विमर्श जी की टिपण्णी
    से सहमत हुं

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  6. यह शोक का दिन नहीं,
    यह आक्रोश का दिन भी नहीं है।
    यह युद्ध का आरंभ है,
    भारत और भारत-वासियों के विरुद्ध
    हमला हुआ है।
    समूचा भारत और भारत-वासी
    हमलावरों के विरुद्ध
    युद्ध पर हैं।
    तब तक युद्ध पर हैं,
    जब तक आतंकवाद के विरुद्ध
    हासिल नहीं कर ली जाती
    अंतिम विजय ।
    जब युद्ध होता है
    तब ड्यूटी पर होता है
    पूरा देश ।
    ड्यूटी में होता है
    न कोई शोक और
    न ही कोई हर्ष।
    बस होता है अहसास
    अपने कर्तव्य का।
    यह कोई भावनात्मक बात नहीं है,
    वास्तविकता है।
    देश का एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री,
    एक कवि, एक चित्रकार,
    एक संवेदनशील व्यक्तित्व
    विश्वनाथ प्रताप सिंह चला गया
    लेकिन कहीं कोई शोक नही,
    हम नहीं मना सकते शोक
    कोई भी शोक
    हम युद्ध पर हैं,
    हम ड्यूटी पर हैं।
    युद्ध में कोई हिन्दू नहीं है,
    कोई मुसलमान नहीं है,
    कोई मराठी, राजस्थानी,
    बिहारी, तमिल या तेलुगू नहीं है।
    हमारे अंदर बसे इन सभी
    सज्जनों/दुर्जनों को
    कत्ल कर दिया गया है।
    हमें वक्त नहीं है
    शोक का।
    हम सिर्फ भारतीय हैं, और
    युद्ध के मोर्चे पर हैं
    तब तक हैं जब तक
    विजय प्राप्त नहीं कर लेते
    आतंकवाद पर।
    एक बार जीत लें, युद्ध
    विजय प्राप्त कर लें
    शत्रु पर।
    फिर देखेंगे
    कौन बचा है? और
    खेत रहा है कौन ?
    कौन कौन इस बीच
    कभी न आने के लिए चला गया
    जीवन यात्रा छोड़ कर।
    हम तभी याद करेंगे
    हमारे शहीदों को,
    हम तभी याद करेंगे
    अपने बिछुड़ों को।
    तभी मना लेंगे हम शोक,
    एक साथ
    विजय की खुशी के साथ।
    याद रहे एक भी आंसू
    छलके नहीं आँख से, तब तक
    जब तक जारी है युद्ध।
    आंसू जो गिरा एक भी, तो
    शत्रु समझेगा, कमजोर हैं हम।
    इसे कविता न समझें
    यह कविता नहीं,
    बयान है युद्ध की घोषणा का
    युद्ध में कविता नहीं होती।
    चिपकाया जाए इसे
    हर चौराहा, नुक्कड़ पर
    मोहल्ला और हर खंबे पर
    हर ब्लाग पर
    हर एक ब्लाग पर।
    - कविता वाचक्नवी
    साभार इस कविता को इस निवेदन के साथ कि मान्धाता सिंह के इन विचारों को आप भी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचकर ब्लॉग की एकता को देश की एकता बना दे.

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  7. डॉक्टर अनुराग और युग विमर्श जी ने बहुत अच्छी बातें कही हैं. हमें बहुत सजग रहकर यह ध्यान रखना है की देश के दुश्मन हर छोटी सी चूक का भी फायदा उठाने को तैयार बैठे हैं.

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  8. डॉक्टर अनुराग और युग विमर्श जी के विचारो से सहमत हूँ . सरकार को अब अपना नजरिया बदलना होगा.

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  9. राज ठाकरे और मुंबई में हमला कराने वाले आतंकवादियों में कोई फर्क नहीं है! राज ठाकरे और उन के कार्यकर्ता तोड़-फोड़, आगज़नी, निहत्थे लोगों के साथ मार-पीट आदि कर के आतंक ही तो फैलाते हैं!

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