*****विश्वास और मान्यताएं पहाड़ों की *****
आज के आधुनिक समाज में कम्प्युटर, मोबाइल आदि बच्चों के खिलौने हो गये हैं। पर पहाड़ों में पुराने समय में (कहीं-कहीं तो आज भी जहाँ आधुनिकता ने अपनी दस्तक नहीं दी है) समय और मौसम की जानकारी प्राप्त करने की अद्-भुद प्रणाली थी।
लोक विश्वास लोगों के अनुभव सिद्ध ज्ञान पर आधारित यह प्रणाली होती है। अत: इनकी उपयोगिता लोक जीवन में विज्ञानवत् एवं निर्विवाद रहती है। इनमें प्रमुख लोक विश्वास निम्न है-
समय की जानकारी के लिए
(i) घड़ियों के प्रचलन से पहले कुमाऊँ में ताँबे का समय मापक यंत्र 'जलघड़ी' का प्रयोग होता था। चारों पहरों में ६४ घड़ियाँ होती है, घड़ी की गिनती प्रथम पहर से होती है।
(ii) शुक्रतारे के क्षितिज पर प्रकट होने पर रात खुल जाती है।
(iii ) मुर्गा बाँग देने लगे तो रात खुलने का संकेत होता है।
मौसम आदि जानकारी के लिए
(i) बाँज (Accipiter nisus ) पक्षी आकाश में उड़ते-उड़ते यदि एक स्थआन पर रुक जाए तो वर्षा होने का अनुमान लगाया जाता है।
(ii ) गौतार (Spus affinis ) पक्षियों की चहल-पहल बढ़ जाए, तो वर्षा होने का अनुमान लगाया जाता है।(iii ) चींटियाँ अपनी बाँबी से अण्डों को लेकर एक कतार में बाहर निकले, तो वर्षा होने का अनुमान लगाया जाता है।
(iv ) पशु जंगल में पूँछ उठाकर भागने लगे, तो वर्षा का अनुमान लगाया जाता है।
(v ) यदि चील (Gyps himlayensis ) आकाश में उड़ते-उड़ते "सरुल दिदी पाणि-पाणि" बोले और लमपूछिया (Cissa sp ) पक्षी 'द्यो काका पाणि-पाणि' बोले तो वर्षा होने का अनुमान लगाया जाता है। (vi ) आकाश में यदि इन्द्र-धनुष (धनौला) दिखाई पड़े तो वर्षा रुकने का संकेत माना जाता है।
(vii ) पूर्व व उत्तर दिशा में बिजली चमके तो वर्षा होती है।
(viii ) कुछ विशेष प्रकार की दीमकें (धनपुतली) पंख लग जाने पर उड़ने लगती है, तो धानों की बुआई प्रारम्भ कर देनी चाहिए।
(ix ) पूस* में बर्फ पड़ने पर गेहूँ की फसल चौपट हो जाती है, परन्तु माघ* से बर्फ पड़ने पर गेहूँ की फसल अच्छी होती है।
* हिन्दी कलेन्डर (बिक्रम सम्वतसर) के महिने
अच्छी जानकारी दी है आपने। नई पीढी को इस जानकारी की बेहद जरुरत है।
ReplyDelete