Saturday, September 5, 2009

अंतहीन इंतजार

*****अंतहीन इंतजार******


वो बूढ़ी निगाहें तलाश रही एक आशियाना,
अपनों से दूर अपनों की तलाश में ।
एक अंतहीन इंतजार में॥



कामोद

4 comments:

नीरज गोस्वामी said...

मार्मिक रचना...लेकिन सच्ची.
नीरज

राज भाटिय़ा said...

बहुत् सुंदर लिखा आप ने एक लाइन मेरी ओर से
वो बूढ़ी निगाहें पुछ रही थी कई सवाल अपनो से??
क्या यही शिला है मेरे प्यार ओर दुलार का

Udan Tashtari said...

मार्मिक...बहुतों का सच!!

ओम आर्य said...

सही है ......बहुत से आभागे लोगो की सच है .....पर हम यही दुआ करते है कि उन्हे आपने मिल जाये......आमीन